उम्र गुज़रती गई

umr guzarti gai

जावेद आलम ख़ान

जावेद आलम ख़ान

उम्र गुज़रती गई

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    जिस उम्र में जलालुद्दीन मोहम्मद

    गद्दीनशीन होकर अकबर-ए-आज़म कहलाए

    उस उम्र में मुझे आकर्षित कर रहे थे

    पीत पत्रकारिता के अश्लील इश्तहार

    जिस उम्र में माराडोना के पंजे

    फ़ुटबॉल के मैदान को जादू सिखा रहे थे

    मैं उस उम्र में फ़िकरेबाज़ लौंडों की सोहबत में

    भदेस भाषा का व्याकरण लिख रहा था

    जिस उम्र में तूतनख़ामेन दुनिया का

    पहला अचंभा ईजाद कर रहा था

    मैं उस उम्र में तुम्हारे प्रेम में पड़कर

    सूरजमुखी बन गया था

    तुम जिधर जातीं उधर ही घूम जाता दिन भर

    तुम्हारे ताप से झुलसा मगर आँख मिलाता रहा

    फिर शाम हुई और मेरे देखते ही देखते

    हाथ हिलाते हुए क्षितिज की आड़ में गुम हुईं तुम

    और झुलसी हुई पंखुड़ियों के साथ

    मुझे गुज़ारनी पड़ी एक लंबी काली रात

    जिसका कभी अंत नहीं हुआ

    जिस उम्र में सिकंदर के बेड़े सागर की छाती पर

    दहाड़ते हुए निकले थे विश्व-विजय के लिए

    मैं उसी उम्र में प्रेम-वियोग की नाटिका में

    शुतुरमुर्ग़ का अभिनय करने में व्यस्त था

    रेत में छिपी गर्दन दुनियावी हलचलों से बेख़बर

    'हाँ' और 'न' की स्वीकृतियों में हिलने इंकार करती रही

    बंद आँखों में हर रोज़ एक असफ़ल देवदास

    आत्महत्या के लिए किसी चौखट पर सर पटकता रहा

    पर कहीं से नहीं आई सांत्वना की एक भी पुकार

    आह मैंने इतिहास से कुछ नहीं सीखा

    नौकरी की तलाश करती किताबों में डूबी

    मेरी जवानी यू-ट्यूब पर चलती फ़िल्म में

    उस विज्ञापन की तरह आई

    जिसे स्किप करके लोग आगे बढ़ जाते हैं

    मैं उम्र के दूसरे पड़ाव के आख़िरी छोर पर खड़ा हूँ

    सपाट भाषा में कहूँ तो

    मैं बचपन से सीधा अधेड़ हुआ हूँ

    और अब जबकि मुझे होना चाहिए एक सफल पिता

    एक स्नेहिल अध्यापक

    एक ज़िम्मेदार पति

    एक लोकतांत्रिक नागरिक

    तब इतिहास से प्रेरणा लेते हुए

    मैं अधेड़ उम्र के बदनाम तानाशाह की तरह

    अड़ियल कवि बनकर

    सिर्फ़ कविताओं में ख़र्च कर रहा हूँ बची हुई उम्र

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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