त्वमेव सर्वं मम् देवदेव

twmew sarwan mam dewdew

नेहा अपराजिता

नेहा अपराजिता

त्वमेव सर्वं मम् देवदेव

नेहा अपराजिता

और अधिकनेहा अपराजिता

    जिन्हें मिटना पसंद था

    वे मिटने के लिए मिट्टी में सने रहे

    झुकने की दुनिया में सब झुक रहे थे

    झुकने की शर्त थी कि वे मिट नहीं सकते थे

    मिटने की शर्त थी लंबवत, सीधा और सपाट रहना

    जिससे दूर से मारे जा सकें सपाट संज्ञा पर कंकड़

    इसी तरह मिट्टी और मिटने वाले की क़ीमत कम होती जा रही

    इसी तरह बढ़ती जा रही झुकी हुई रीढ़ की संख्या

    जैसे ग़ायब हुई थी मनुष्य की पूँछ वैसे ही

    यह सभ्यता बिना रीढ़ के मनुष्यों की सभ्यता कही जाएगी।

    जिन्होंने कहा कि 'मुझे डर है उनसे'

    दरअसल, उन्हें दूसरों से नहीं ख़ुद की करनी से डर था

    डर था कि कहीं

    मुँह से निकली सच बात पर यक़ीन करते ही

    उसके सारे भेद खुल पड़ेंगे दुनिया के समक्ष

    हम ताउम्र अपने ही किए से डरते रहते हैं

    हम ताउम्र अपने किए का दोष दूसरों के सिर मढ़ते रहते है

    दोषों की चोरी और दोषी की सीनाज़ोरी

    अपने चरम पर खड़ी होकर सत्य को गर्त में ढकेल रही है

    यह सभ्यता सत्य के दमन की सभ्यता कही जाएँगी।

    जिन्हें नहीं था अभ्यास झूठ सहने का

    ही अभ्यास झूठ कहने का

    उन्होंने सबसे ज़्यादा सहे झूठ

    उन्होंने सबसे ज़्यादा ज़लील होते देखा सच को

    ये देखना और ये सहना

    इस हाड़ माँस को घिस-घिस कर बुरादा बनाए डाल रहा है

    हमारी सभ्यता के अवशेष से नहीं मिलेंगे अन्नागार और स्नानागार

    यह सभ्यता बुरादों और बारूदों की सभ्यता कही जाएगी।

    जो नहीं करते हैं परित्याग अपनी मूलता का

    उनके मूल पर ही चोट की जाती रही

    हुजूम को पता है कि

    हड्डी के ढाँचे को कैसे निचोड़ना है और ज़ोर देना है

    कि कहो–त्वमेव माता पिता त्वमेव... त्वमेव सर्वम मम देवदेव!

    इंसानों का ज़ोर है कि इंसान, इंसान की शरणागति स्वीकार करे

    विधाता ने कभी नहीं ज़ोर दिया कि इंसान उनकी शरणागति स्वीकार करे

    ये सभ्यता मानवता के विपरीत प्रवाह में बहने की सभ्यता कही जाएँगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नेहा अपराजिता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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