39°C

39°c

तुषार धवल

और अधिकतुषार धवल

     

    मरीन ड्राइव, मुंबई

    काई के सँवलाए गाढ़े हरे रंग का 
    अलसाया समंदर 
    अनमने हाथों से 
    किनारे पर
    आदिम पत्थरों के गंजे सिर की 
    सुस्त चंपी करता हुआ 
    देखता है 
    किरणों से मिटमिटाई आँख से 

    धुल कर धूप में टँगे 
    बदन से पानी टपक रहा है 
    उमस ऐसी कि भरे नालों-सा पसीना 
    उफनता है
    सूरज को सिर चढ़ा रखा है 
    प्रेमियों ने 
    समंदर को मुँह लगा रखा है 
    दुनिया का स्वाद खारा इनकी जीभ पर 
    प्यार का नमक चख रखा है 

    धूप इन पर नहीं पड़ती
    39°C की उमस भरी गर्मी 
    इनके लिए नहीं है 
    नहीं हैं समय के खाँचे 
    बहते बोध में
    ये दुनिया पर पीठ किए 
    समंदर को देखते हैं 
    खोजते अपनी लहर को 

    स्क्रीनशॉट-सा यह दृश्य जिसमें 
    'इमॉटिकॉन' की तरह वे 
    रह-रह कर हँसते-हिलते हैं 

    एक अटकी हुई जम्हाई है यह दुपहर, जिसमें
    उनके ठीक पीछे
    'जैज़ बाय द बे' के 
    शीशेदार एयरकंडीशंड माहौल में 
    पिट्जा और लेजर बियर की चुस्कियों-सा 
    मरीन ड्राइव थोड़ा 'हाई मूड' में चलता हुआ
    लाल सिग्नल पर मन मार कर ठहर गया है

    ज़ेब्रा क्रॉसिंग पर वैतरणी की तरह सड़क पार करते 
    हड़बड़ाए लोगों का झुंड 
    अपनी बिखरी बिंदुओं को समेट लेने की अकुलाहट में 
    उस पार लपका जा रहा है 

    मरे साँप-सी सुस्त सड़क पर 
    व्यस्त चीटियों की दौड़ती लहर-सा ट्रैफिक 
    उफ़न पड़ा है
    और इस दौड़ते दृश्य में

    सिर जोड़े जोड़ों के कंधों से 
    नीचे की तरफ़ सरक आए हाथों में 
    एक कंपन 
    उग कर टिक गई है
    बदन सिहरन का स्थायी पता है 
    न दर है, न डगर, न बसर 
    मछली की गंध उड़ाती 
    इस भीगी भारी हवा में 
    सब कुछ एक खिंची हुई अँगड़ाई है

    आपसी नाभियों से उगे 
    इन सभी दृश्यों में 
    धूप उमस या 39°C का अर्थ नहीं है 
    और न ही समंदर पर सफ़ेद पाल तानी 
    उन नौकाओं के लिए 
    जो लहरों पर थिरक रही हैं 

    इस सबसे अलग-थलग और उकताया हुआ 
    राग-रिक्त आदमी 
    उचाट आँखों से देखता है
    इन प्रेमियों को
    रेस्त्राँ में निथरती चुस्कियों को
    सड़क पर व्यस्त भागते लोगों को 
    वह मरीन ड्राइव पर छाँह खोजता 
    नारियल के पेड़ पर पंख खुजाते कौवे को देखता है 
    कॉलर ढीली कर 
    पसीना पोंछता आसमान देखता हुआ कहता है 
    उफ्फ! 39°C की यह उमस यह धूल यह धुआँ 
    जीना मुहाल हुआ जाता है 
    इस गर्मी में!

    स्रोत :
    • रचनाकार : तुषार धवल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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