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तुम्हें याद है न

tumhein yaad hai na

मौलश्री कुलकर्णी

अन्य

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मौलश्री कुलकर्णी

तुम्हें याद है न

मौलश्री कुलकर्णी

और अधिकमौलश्री कुलकर्णी

    तुम्हें याद है

    पिछली बार जब एक तारा टूटा था

    और हमारे कुछ माँगने से पहले ही

    मोतियों की प्लेट जैसे उस आसमान में

    ओझल हो गया था

    और कितना हँसे थे हम

    छत की मुँडेर पर बैठे

    मैंने गली के नुक्कड़ वाली

    शालू के नाम पर तुम्हें

    कितना चिढ़ाया था

    तुम्हें याद है न...

    जब तुमने मुझे अपनी पहली कविता सुनाई थी,

    आज कह रही हूँ तुमसे

    मुझे एक भी शब्द समझ नहीं आया था

    मैं तो बस तुमको सुन रही थी—

    अपनी आँखों से,

    तुम्हारा प्यारा-सा चेहरा,

    जिस पर कविता के साथ

    अनगिनत भाव आ-जा रहे थे

    मैं तो उन धडकनों को पढ़ रही थी

    जो मेरे मन में सरगम बजा रही थीं

    तुम्हें याद है न...

    एक हलवाई था सड़क के उस पार

    जहाँ हमने मुफ़्त की जलेबियाँ पच्चीसों बार खाई थीं

    फिर एक बार उसने बदले में

    तुम्हारी साइकिल रखवा ली थी

    और तुम्हें मनाने को,

    तुम्हारे लाल लाल हो चुके

    उस चेहरे का रंग बदलने को,

    मैंने तुमको पाँच रुपए की खिलौने वाली कार दिलाई थी

    अब तो शायद याद भी हो तुम्हें ये सब

    बस आज जलेबियाँ खा रही हूँ,

    एक कविता पढ़ते-पढ़ते,

    अभी शालू आई थी कुछ देर पहले,

    और बरसों के बाद आज फिर

    एक टूटता तारा देखा है...

    स्रोत :
    • रचनाकार : मौलश्री कुलकर्णी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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