फलेगी डालों में तलवार

phalegi Dalon mein talwar

रामधारी सिंह दिनकर

रामधारी सिंह दिनकर

फलेगी डालों में तलवार

रामधारी सिंह दिनकर

और अधिकरामधारी सिंह दिनकर

    धनी दे रहे सकल सर्वस्व,

    तुम्हें इतिहास दे रहा मान;

    सहस्रों बलशाली शार्दूल

    चरण पर चढ़ा रहे हैं प्राण।

    दौड़ती हुई तुम्हारी ओर

    जा रहीं नदियाँ विकल, अधीर;

    करोड़ों आँखें पगली हुईं,

    ध्यान में झलक उठी तस्वीर।

    पटल जैसे-जैसे उठ रहा,

    फैलता जाता है भूडोल।

    हिमालय रजत-कोष ले खड़ा,

    हिंद-सागर ले खड़ा प्रवाल,

    देश के दरवाज़े पर रोज़

    खड़ी होती ऊषा ले माल।

    कि जाने तुम आओ किस रोज़

    बजाते नूतन रुद्र-विषाण,

    किरण के रथ पर हो आसीन

    लिए मुट्ठी में स्वर्ण-विहान।

    स्वर्ग जो हाथों को है दूर,

    खेलता उससे भी मन लुब्ध।

    धनी देते जिसको सर्वस्व,

    चढ़ाते बली जिसे निज प्राण,

    उसी का लेकर पावन नाम

    क़लम बोती है अपने गान।

    गान, जिनके भीतर संतप्त

    जाति का जलता है आकाश;

    उबलते गरल, द्रोह, प्रतिशोध,

    दर्प से बलता है विश्वास।

    देश की मिट्टी का असि-वृक्ष,

    गान-तरु होगा जब तैयार,

    खिलेंगे अंगारों के फूल,

    फलेगी डालों में तलवार।

    चटकती चिनगारी के फूल,

    सजीले वृंतों के शृंगार,

    विवशता के विषजल में बुझी,

    गीत की, आँसू की तलवार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्वतंत्रता पुकारती (पृष्ठ 282)
    • संपादक : नंद किशोर नवल
    • रचनाकार : रामधारी सिंह दिनकर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

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