उसके लौटने का इंतज़ार
वैसे भी
उससे रोज़-रोज़ मिलना
कहाँ हो पाता है
फिर भी उसका शहर में होना
इत्मीनान की तरह है
कि जब मन में
आएगा
उठेंगे और मिल आएँगे
नहीं भी मिले
तो दिख ही जाएगी
आते-जाते
दुआ सलाम के साथ
एक अर्थपूर्ण मुस्कुराहट उठेगी
उसके चेहरे पर
और वह
हवा में हाथ हिलाते हुए
आगे बढ़ जाएगी
इस तरह महीनों निकल जाएँगे
बिना देखे
बिना मिले
और
बिना बात किए
उसके शहर में न होने से
इत्मीनान थोड़ा दरक़ जाता है
आसमान थोडा उदास हो जाता है
हवा में ऑक्सीजन कम हो जाती है
धरती का नमक कम हो जाता है
पक्षियों का चहचहाना कम हो जाता है
यह भी नहीं कि
रोज़मर्रा के काम बंद हो जायँ
या ठीक से नींद न आए
बस्स
मन के कोने में कहीं
एक चोर घड़ी
टिकटिकाने लगती है
उसके लौटने का इंतज़ार करती हुई-सी।
- रचनाकार : सदानंद शाही
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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