बड़बोले लोग
वे जिनके माथे पर सिलवटें नहीं होती
सिर्फ़ वे जो ऊँचाई से रब्त रखते हैं
सबसे होकर गुज़रते हैं
रौशनदार
संयमित आवाज़ वाले
वे जो पतझड़ का तिरस्कार करते हैं
वे जो आँसुओं को पीठ दिखाते हैं
जो जानते हैं ख़ुशी
चुप्पी से भयभीत हो जाने वाले
मुस्कुराने वाले केवल वस्तुओं पर
जिनकी कहानी में कोई अन्य नहीं है
जो दुःख से दूषित हैं
जिनके आईनों पर भाप नहीं हैं
जिनके रास्ते जाड़ों तक नहीं गए
हृदयों पर जिनके मृत्यु की मुहर है
वे जिनकी खिड़कियाँ बाहर की ओर नहीं खुलती
वे जो इश्क़ से शर्मिंदा हैं
सौंदर्यबोध से रिक्त
जिनकी भाषा हिंसक है
जिनकी ज़बान से पहले शरीर पेश आता है
वे जिनसे दुनिया अछूती है
वे जो भूल जाते हैं,
वे जो भूल जाते हैं
ओह! यह इकहरफ़ी तंगी
यही है मेरा मौसम,
सबसे मिलकर बना हुआ
मैं एक वाक्य हूँ अब,
तीन नुक़्तों में ख़त्म होता हुआ
- पुस्तक : सदानीरा पत्रिका
- संपादक : अविनाश मिश्र
- रचनाकार : शुकरु एरबाश
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