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तरु

सुरेन्द्र झा 'सुमन'

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और अधिकसुरेन्द्र झा 'सुमन'

    तरुण तपस्वी मग्नमना छी!

    चिर साधक तरु! अहँ जन्महिसँ तपमे लग्न कोना छी!!

    कठिन योग-साधन अविरत शीर्षासन अभ्यासे

    गृह-विहीन भय, गिरिक शिखर वन बीच लेल आवासे

    हिम ऋतु राति बैसि पालामे निश्चल अहाँ बितौलहुँ

    दीर्घ निदाघ तप्त आतपमे दिन भरि अहह! गमौलहुँ

    वाण तीक्ष्ण वर्षाके हर्षहिँ बाहर रहि नहि गनलहुँ

    मेघ वज्र-गर्जनो विद्युत-कुटिल तर्जनो सहलहुँ

    प्रकृति-रचित पर्णक कुटीर छल ने छारल ने सज्जित

    दण्ड-कमण्डलु धरि नहि जोगल, ने गैरिक अनुरञ्जित

    बल्कल वसन बनल, तन धूसर, छी अद्भुत अवधूते

    पवनहि असन, ओस कनसँ पुनि तृषा शमन अजगूते

    सुख-दुःखक अछि स्वाद समाने मानल अनुपाते

    उमस बिहाड़ि, पाथरक वर्षा पुनि वासन्ती वाते

    स्तुति-निन्दामे भेद मानल, रिपु-हित बुझल समाने

    पटबथि वा काटथि दूहूके छायासँ सम्माने

    सृष्टि-तत्व ने मुनिजन धरिमे, भेद-बुद्धि व्यवधाने

    समदर्शी! अहँ द्विज-अन्त्यजके कयल तुल्य फल दाने

    स्वयं उपागत लता सुन्दरी देखल लपटलि अंगे

    धीर! नियममे तदपि पाओल रञ्च-मात्र कहुँ भंगे

    अमर दधीचि विदित छथि परहित निज अस्थिक दय दाने

    किन्तु अहाँ आजीवन तिल-तिल कय सर्वांग प्रदाने

    फल दी, फूल लुटाबी, दलहुक शय्या हित कय त्यागे

    त्वचा औषधिक हेतु घिँचाबी इन्धन शाखा-भागे

    अस्थि-काष्ठ संयोगहिसँ रचि विविध वस्तु उपयोगी

    गृह उपकरण देल यश-लिप्सा शून्य विलक्षण योगी

    श्रान्त पथिक पर जखन दिनपतिक हो कठोर कर पाते

    तखन ताप अपनहि ऊपर लय बचबी अहँ उत्पाते

    विश्वक अकथ वेदना-गाथा कहथि अहँक यदि काने

    सदा सञ्चरण-शील समीरण तखन व्यथा-अनुमाने

    छी देखैत अतिकम्पित झर्झर अश्रु-पत्र बहबैते

    दया द्रवित अहँ विहगक ध्वनिमे अनुखन रही कनैते

    फलक समय आनत होयब, अहँ देल जगतके शिक्षा

    आश्रयगत यदि उच्छेदक हो ततहु अदेय भिक्षा

    जीवन भरि साधना ध्येय हो यदि उन्नतिक प्रतीक्षा

    हे महोपदेशक! अपनहिँसँ लेब जीवनक दीक्षा

    ऊर्ध्व शाख पर विहग बसल छथि हे अच्युत! श्रुति-मानी

    अधो-मूलके सेबि रहल जग, हम विमूढ़ नहि जानी

    अहा! अहँक अर्चामे डोलबथि चौर वसन्त-समीरे

    पाद्य पयोद चढ़ाबथि, पृथ्वी बनि आसन स्व-शरीरे

    धूपित कय दिन भरि भास्कर पुनि चन्द्र चन्दनक वारि

    चढ़ा जाथि, खद्योत-दीप रजनी उपासिका वारि

    स्रोत :
    • पुस्तक : रचना संचयन (पृष्ठ 38)
    • संपादक : चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’/ शंकरदेव झा
    • रचनाकार : सुरेन्द्र झा ‘सुमन’
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2012

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