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सुनो सरि

suno sari

आकाश वर्मा

अन्य

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आकाश वर्मा

सुनो सरि

आकाश वर्मा

और अधिकआकाश वर्मा

    सुनो सरि

    ये हवायें आज, बरसों बाद भी

    ये अहसास भरतीं हैं

    कि तुम आस-पास हो

    जहाँ कहीं भी जाता हूँ साथ-साथ

    तुम भी चली आती हो

    मैं गाहे-बगाहे तुम्हें याद दिलाना चाहता हूँ

    वह पत्थर

    जिस पर हम साथ-साथ बैठे थे

    पहली बार, और आख़िरी बार भी

    नदी के किनारे पेड़ के नीचे

    जहाँ सारी उलझनों को हल करना चाहा था तुमने

    तुम्हारी आँखों में ढेर सारे दृश्य थे

    जिन्हें मेरी आँखों में भरना चाही थी तुम

    होठों पर शब्द नहीं थे

    फिर भी समझाना चाहती थी बहुत कुछ

    वह पत्थर

    आज भी वहीं पड़ा है

    हाँ थोड़ा काला-सा पड़ गया है

    पता नहीं तुमने इसे दुबारा देखा या नहीं

    नीचे उगी दूब चढ़कर

    मेरा तुम्हारा आकार खींचती है वहाँ

    जब भी मैं गुजरता हूँ

    देखता हूँ मेरे तुम्हारे निशान आज भी

    वहीं पड़े हैं

    वे निशान जो बताते हैं

    यहाँ कुछ शब्द गिरे थे कभी

    जो धरती से टकराए और खो गए

    जिनमें से कुछ मेरे थे

    और कुछ तुम्हारे

    चाहो तो देख सकती हो कभी भी

    वहाँ उन शब्दों के छोटे-छोटे पौधे उगे हैं

    जो कभी लहलहाए होंगे

    अभी मुरझा गए हैं

    तुम्हे याद होगा मेरा पहला शब्द

    जिसका अर्थ नहीं था शायद

    सिर्फ ध्वनि और कम्पन भर था तुम्हारे लिए

    जिसे लौट जाने के लिए

    प्रतिबंधित कर दिया था तुमने

    वह तुम्हारे निशान पर तुम्हारा आकार भरता है

    वह पत्थर मेरे लिए

    स्वतंत्रता का पहला प्रतीक था

    जहाँ सूरज एक झलक दिखलाया और बुझ गया

    जहाँ हवा कुछ पल महकी और लौट गई

    जहाँ एक आवाज़ ज़ोर से निकली

    फिर दब गई

    और मैं खो गया था

    अपने और अपने शब्दों के अर्थ की तलाश में

    हाँ तुमने यह बताने की कोशिश की

    कि परिवार नामक पुरातन और जटिल संस्था

    तुम पर भारी है

    जिसने धरती को ढोने का काम

    तुम्हें सौंप रखा है

    हर मौसम और हर घटना को बुनती हो तुम ही

    सब कुछ तुम करती हो बिना थके

    कि दुनिया ठीक से चल सके

    पर मैंने बाँट लेना चाहा था सब कुछ

    तुम्हारे छलनी कंधों के दर्द बाँटना चाहा था

    परंतु तुम वहाँ बैठी, मुस्कुराई

    और स्वतंत्र होने के बाद जैसी

    अफ़सोस और पश्चाताप से भरी गहरी साँस छोड़कर

    भूल गई

    तुम भूल गई सब कुछ

    तुम भूल गई पत्थर पर बना वह निशान

    जिसे मैंने रखा था

    उस निशान के साथ मुझे भी

    यह भी कि

    संसार की सभी किरणें तुम्हारे भीतर समाहित थीं

    सभी ख़ुश्बूएँ तुम्हारे भीतर थीं

    तुम भूल गई

    जिनकी ज़रूरत थी मुझे

    तुम्हें पता था कि

    सारी ज़रूरतों के, अभाव से मैं बना हूँ

    और यह भी कि तुम्हारे ईश्वर ने कुछ नहीं दिया

    जिससे तुम बनी हो

    तुम्हारे पास सब कुछ था—

    दया, माया, पीड़ा, ख़ुशी, ममता, कोमलता

    और दुनिया का प्रत्येक तत्त्व

    तुम्हारी ज़रूरत थी मुझे

    जब सारे संसार को पूरब से पश्चिम

    और ऊत्तर से दक्षिण करते-करते

    सभी ग्रहों, नक्षत्रों और पृथ्वीयों से थककर

    तुम्हारे पास आता था

    तो तुम्हें देखकर सब कुछ पा जाता था

    तुम्हें पता थीं मेरी ज़रूरतें

    पर तुमने नहीं दी

    मेरी ज़रूरत थीं तुम

    तुम जानती हो

    तुम्हारा पास होना सारी ऊर्जा का स्रोत था

    तुम्हारा पास होना प्रत्येक समस्या का हल था

    कुछ और होना बस तुम्हारा पास होना

    मेरे लिए सब कुछ था

    तुम किसी ईश्वर से कम नहीं थीं

    जिससे मैं कुछ भी माँग सकता था

    लेकिन तुम भूल गई

    और बना दिया एक तारा दिन का

    एक तारा जो सूरज नहीं था

    एक तारा जो दीपक भी नहीं था

    एक तारा

    जिसमें कोई लौ तक नहीं रही

    सुनो सरि

    सबकुछ तुम भूल गई

    इतना कहकर कि मेरा, तुम्हारे पास होना पाप है

    और मैं मुस्कुरा दिया था।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकाश वर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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