गर्मियों की अगवानी

garmiyon ki agwani

आर. चेतनक्रांति

आर. चेतनक्रांति

गर्मियों की अगवानी

आर. चेतनक्रांति

और अधिकआर. चेतनक्रांति

    गर्मियाँ रही हैं

    सूरज फिर दफ़्तर के मालिक की तरह

    सिर पर बैठेगा

    और दिन

    नौकर की यंत्रणा की तरह

    लंबे और लंबे होते चले जाएँगे

    रिक्शेवाले ख़ून थूकेंगे और भगवान को

    याद करेंगे

    और पढ़े-लिखे एक बार फिर कहेंगे कि

    ओज़ोन की छत में छेद हो गया है

    शहर में पानी की क़िल्लत हो जाएगी

    कूड़े के ढेरों से भाप उठेगी

    और सारी बिजली वे सोख लेंगे

    जिनके हित में विज्ञान ने सबसे ज़्यादा

    काम किया है

    हर चीज़ पर्दे से बाहर जाएगी

    हर चीज़ नंगी खड़ी सामने दिखेगी

    ईर्ष्या और नफ़रत और हवस और गर्मी से

    सुलगती आँखें

    हर कहीं पड़ेंगी। चमकती धूप में कंकड़-कंकड़

    साफ़ दिखेगा

    कोहरे में मुँह छिपाकर चुप हो रहने का सुख

    अब किसी धातु को मिलेगा मिट्टी को

    पिघले तारकोल की सड़क पर

    चप्पलें चिपकेंगी

    और तलुओं को ठोंकेगी

    कि पैदल चलने वाले तुझ पर थू

    झुग्गियों की प्लास्टिक दुनिया पिघलकर

    फिर बह जाएगी

    फिर शास्त्री भवन का ध्यान सिंह उनसे

    पूछेगा—अब आया मज़ा, दिल्ली को

    ख़ाला का घर समझा है!

    घनी पुरानी बस्तियों के बाशिंदे

    फिर महीनों-महीनों

    एक संपूर्ण संभोग को तरस जाएँगे

    छतों के मेले में अकेले लेटे हुए वे करवटें

    बदलेंगे और रेती फाँकेंगे

    पंखे आग मथेंगे

    किराएदार देशवासी

    मालिक मकान की आँख बचाकर

    छह-छह बार नहाएँगे

    और भीगे बिस्तर पर लेट

    पहाड़े गाएँगे

    हाँ, लड़कियों को यह मौसम शायद ख़ूब

    रुचे

    खड़ी धूप में वे हवा के हल्के गाने गाएँगी

    और आग के समंदर में उघड़े बदन तैर जाएँगी

    बाक़ी, सर्द लोहे के बंद आततायी, इन

    गर्मियों में देखना

    ये गर्मियाँ शायद उन्हें भी भाएँगी

    जिनके पास इस साल सर्दियों में

    छत थी कंबल

    और सरकार ने स्कूलों की इमारतें इसलिए

    बंद रखीं

    कि वे जगह-जगह थूकेंगे

    अपना ज़ख़्मी गू गुलाबों पर पोत देंगे

    पर वे गर्मियों में भी मरेंगे जैसे सर्दियों में मरे थे

    इसीलिए इनके बारे में सोचना

    अब मैं धीरे-धीरे बंद ही कर रहा हूँ

    इन्हीं को देखते रहें

    तो आप हर मौसम को गाली दें!

    स्रोत :
    • पुस्तक : शोकनाच (पृष्ठ 95)
    • रचनाकार : आर. चेतनक्रांति
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2004

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