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सुख-दुःख का स्वरूप

sukh duःkha ka svarup

अनुवाद : सत्यकाम विद्यालंकार

ख़लील जिब्रान

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ख़लील जिब्रान

सुख-दुःख का स्वरूप

ख़लील जिब्रान

और अधिकख़लील जिब्रान

     

    फिर एक महिला ने प्रश्न किया, सुख-दुःख के क्या स्वरूप हैं?

    अलमुस्तफ़ा ने कहा :

    सुख, दुःख का ही नग्र रूप है।

    तुम्हारे अंतर का वही सरोवर, जिसमें हास्य की हिलोर उठती रही है, प्रायः तुम्हारे
    ही आँसुओं से भरता रहा है।

    इसके अतिरिक्त और हो भी क्या सकता है?

    दुःख तुम्हारी आत्मा में जितनी गहरी रेखाएँ खीचेंगा उसमें, उतना ही अधिक सुख
    भर सकोगे।

    आज जिस प्याले में तुमने द्राक्षा-मधु भरा है, यह वही तो है जो कल कुम्हार की
    दहकती भट्टी में तप चुका है।

    और आज जो बंसी तुम्हारी व्याकुल आत्मा को लोरियाँ दे रही है, वह क्या वही बाँस
    का टुकड़ा नहीं है, जिसे कल बढ़ई ने पैने नश्तर से काटा था?

    सुख के क्षणों में हृदय की गहराई में झाँको और देखो कि आज सुख का वही कारण है
    जो कल दुःख था।

    दुःख के क्षणों में फिर दिल की गहराई में झाँकोगे तो अनुभव करोगे कि आज तुम
    उसी वस्तु पर रो रहे हो जिस पर कल हँस रहे थे।

    कुछ लोग कह उठते हैं—सुख दुःख से श्रेष्ठ है।

    दूसरे कहते हैं—नहीं दुःख सुख से श्रेष्ठ है।

    मैं कहता हूँ—दोनों साथी हैं, अभिन्न हैं।

    दोनों साथ-साथ पैदा होते हैं। एक जब तुम्हारे पास बैठकर जागता है, तो दूसरा
    तुम्हारी शय्या पर तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा होता है।

    सत्य तो यह है कि सुःख-दुःख के बीच तुम तराज़ू के पलड़ों की तरह तुले रहते हो।

    जब तुम रिक्त रहते हो, तभी संतुलित और संस्थित रहते हो।

    इसमें तभी उतार-चढ़ाव आना चाहिए जब जगत् का स्वामी स्वयं अपना स्वर्ण,
    अपनी चाँदी तोलने को तुम्हें हाथ में दे।


                                         
    स्रोत :
    • पुस्तक : मसीहा
    • रचनाकार : ख़लील जिब्रान
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 2016

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