Font by Mehr Nastaliq Web

सिकंदर लौट रहा है

sikandar laut raha hai

मदन कश्यप

अन्य

अन्य

मदन कश्यप

सिकंदर लौट रहा है

मदन कश्यप

और अधिकमदन कश्यप

    अपनी ही जीती हुई धरती से

    पराजितों की तरह गुज़र रही है विश्वविजयिनी सेना

    सिकंदर लौट रहा है

    अपनी जीत को जहाँ का जहाँ छोड़ते हुए

    पराभव और व्यथा के साथ सिकंदर लौट रहा है

    कभी उन्हीं रास्तों से वह आया था

    धूल के बादलों में रक्तरंजित तलवारों की बिजलियाँ चमकाते

    विशाल लाव-लश्कर के साथ

    नदियों को छलाँगते हुए पहाड़ों को रौँदते हुए

    गाँवों-नगरों को जलाते हुए फ़सलों को कुचलते हुए

    इन्हीं रास्तों से वह आया था

    जहाँ-जहाँ पड़े थे उसके पाँव उससे और दूर-दूर तक मची थी तबाही

    जहाँ-जहाँ तक दौड़े थे उसके घोड़े उससे और दूर-दूर तक काँपी थी पृथ्वी

    ढेर सारे लोगों को अपने पाँव

    और उससे भी ज़्यादा को अपने आतंक से कुचलते हुए

    जिन रास्ते से आए थे उन्हीं रास्तों से लौट रहे हैं

    मृतकों की यादों और घायलों की चीख़-पुकार से हताश व्याकुल सैनिक

    जिन नगरों को जलाया था उनके साथ आँसू बहाती

    जिन फ़सलों को मसला था उनके कुचले दाने चुन-चुन कर भूख मिटाती

    जिन पहाड़ों को रौंदा था उनमें पीठ टिका कर थकान उतरती

    लौट रही है विश्वविजयिनी सेना...

    स्रोत :
    • पुस्तक : दूर तक चुप्पी (पृष्ठ 88)
    • रचनाकार : मदन कश्यप
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
    • संस्करण : 2014

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY