डूबती शामों के नीले आसमान के लिए

Duubatii shaamo.n ke niile aasamaan ke li.e

शुभम श्री

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डूबती शामों के नीले आसमान के लिए

शुभम श्री

और अधिकशुभम श्री

     

    पहला प्यार

    पहला प्यार पहली शराब था
    जिसे स्वाद से अनजान पिया मैंने
    यही था, यही था
    कुछ नहीं था ये तो
    सोचा और किया मैंने
    डूबकर प्यार
    स्वाद अच्छा लगता था
    नशा चढ़ता था
    चढ़ता जाता था
    जैसे चाहा, जितना चाहा
    बेपरवाह, ख़ूब-ख़ूब किया प्यार
    हर मिनट बदल जाने वाले चंचल मन का
    पहला क़दम था अनुभव की दुनिया में
    बड़ी गंभीरता से हर अनुभव जिया मैंने

    दूसरा प्यार

    दूसरा प्यार दूसरी नौकरी था
    तजुर्बों के साए में चलता हुआ
    उसे होना नहीं था
    लेकिन होने दिया गया
    जैसे एक ख़ाली कमरा
    जहाँ किसी को रहना नहीं था
    लेकिन रहने दिया गया
    रहने भर के लिए
    ख़ुशी कम ख़ुशी हुई
    हँसी कम हँसी हुई
    जो हुआ सब हद में
    बेहद कुछ नहीं
    प्यार भी नहीं
    दूसरी नौकरी सँभली हुई नौकरी थी
    दूसरा प्यार सँभला हुआ प्यार था

    तीसरा प्यार

    तीसरा प्यार तीसरा रास्ता था
    पहले के रास्तों को भुलाने वाला
    नई दिशा में ले जाने वाला
    तीसरा रास्ता चौकन्नेपन का रास्ता था
    दुर्घटना से बचता हुआ
    फर्स्ट एड किट लिए
    तीसरा प्यार चैट रूम-सा प्यार था
    जहाँ से कभी भी निकला जा सकता था
    तीसरा रास्ता मुश्किल रास्ता था
    तीसरा प्यार मुश्किल प्यार था

    चौथा प्यार

    जैसे बरसों का सोया पागलपन जगा हो
    एक तूफ़ान आया और प्यार
    फिर तूफ़ान आया
    तमाम अधलिखी कविताएँ फाड़कर
    नई कविता शुरू करने के जोश-सा
    प्यार आया
    जैसे बुख़ार आया
    घर कपड़े जूते पता शहर
    सब बदल डालने, सब नया करने
    सब भूल जाने, सब ख़त्म करने
    एक ज़िद्दी-सा ख़ुमार आया

    बाद के तमाम प्यार

    बाद के तमाम प्यार यानी पाँचवे, छठे, सातवें, आठवें और और और…
    उम्र की तरह आए
    किसी ख़ास वक़्त में एहसास कराते हुए
    जैसे आईने के सामने चेहरा
    या किसी फ़ॉर्म पर डेट ऑफ़ बर्थ का कॉलम
    उन पुराने लोगों की तरह
    जिनकी धड़कनें एक वक़्त के बाद तेज़ होना बंद कर देती हैं
    सर्दी, गर्मी, भूकंप, तख़्तापलट, आंदोलन, अकाल
    सब में बराबर रफ़्तार से चलती हुई
    सँवारे हुए बग़ीचों जैसे आए प्यार
    हर चीज़ क़रीने से लगी हुई
    हर बात क़रीने से कही हुई
    हर मुस्कान का जवाब मुस्कान
    हर शुक्रिया का जवाब शुक्रिया
    कोई शिकवा नहीं, कोई शुबहा नहीं
    कोई ज़िद नहीं, कोई ग़ुस्सा नहीं
    वक़्त बेवक़्त ज़िद का अभिनय
    ग़ुस्से का भी
    क़रीनेपन के स्वाद के हिसाब से
    कैलेंडर की तरह बदलते गए प्यार
    प्यार या आईने
    जो प्यार की तरह आते गए
    फ़र्क़ पड़ना कम होता गया
    नुक़सान होना कम होता गया
    जैसे नशा चढ़ना कम होता गया
    बहुत-सी शराब के बाद

    स्रोत :
    • रचनाकार : शुभम श्री
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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