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शिकायत

shikayat

अनुवाद : महावीरसिंह चौहाण

सा'ब किसी ने यह गोदाम खड़ा कर दिया है

रातोरात, उसी मुहल्ले में, जहाँ हम सब रहते हैं।

आप कुछ कीजिए-कानूनन।

नहीं नहीं, यह तो हमारी अरजी है साहब!

परेसानी? परेसानी की तो आप कुछ पूछिए ही मत।

'अधिकार?' पूछने का अधिकार? वह तो आपको है ही,

है, और पूरा-पूरा है! नहीं, नहीं,

मेरे कहने का यह मतलब कतई नहीं था, सा’ब

अनपढ़ हूँ, गँवार, मेरी बात पर मत जाइए, मेहरबान।

कहने का मतलब कि इस गोदाम ने बड़ी मुसीबत खड़ी कर दी है, सा’ब।

अगर ऐसा होता, तो क्या हम आपको तकलीफ देने आते?

मुसीबतें थोड़े में ही बतानी हों, सर जी, तो बस है इतना ही कि

रात में सो सकते हैं और दिन में जाग पाते हैं, सरकार

'लो, मैंने थोड़ा-सा कहा और आप इतने में ही

पूरी हकीकत समझ गए, सा'ब।

आपकी तो जितनी तारीफ की जाए, कम है।

लेकिन, इस गोदाम का तो कुछ करना होगा, कानूनन, हुजूर।

स्रोत :
  • पुस्तक : जटायु, रुगोवा और अन्य कविताएँ
  • रचनाकार : सितांशु यशश्चंद्र
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2022

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