हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में

har zor zulm ki takkar mein

शंकर शैलेंद्र

शंकर शैलेंद्र

हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में

शंकर शैलेंद्र

और अधिकशंकर शैलेंद्र

    हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!

    तुमने माँगें ठुकराई हैं, तुमने तोड़ा है हर वादा,

    छीना हमसे सस्ता अनाज, तुम छँटनी पर हो आमादा

    तो अपनी भी तैयारी है, तो हमने भी ललकारा है,

    हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!

    मत करो बहाने संकट है, मुद्राप्रसार इन्फ़्लेशन है,

    इन बनियों चोर-लुटेरों को क्या सरकारी कंसेशन है?

    मत आँख चुराओ, बग़लें मत झाँको, दो जवाब,

    क्या यही स्वराज्य तुम्हारा है,

    हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!

    मत समझो हमको याद नहीं है जून छियालिस की घातें,

    जब काले-गोरे बनियों में चलती थीं सौदे की बातें,

    रह गई ग़ुलामी बरक़रार हम समझे अब छुटकारा है,

    हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!

    क्या धमकी देते हो साहब, दमदाँटी में क्या रखा है?

    यह वार तुम्हारे अग्रज अँग्रेज़ों ने भी तो चक्खा है!

    दहला था सारा साम्राज्य जो तुमको इतना प्यारा है,

    हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!

    समझौता? समझौता? हमला तो तुमने बोला है,

    महँगी ने हमें निगलने को दानव जैसा मुँह खोला है,

    हम मौत के जबड़े तोड़ेंगे, एका हथियार हमारा है,

    हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!

    अब सँभले समझौतापरस्त घुटनाटेकू ढुलमुल-यक़ीन,

    हम सब समझौतेबाज़ों को अब अलग करेंगे बीन-बीन,

    जो रोकेगा वह जाएगा यह वह तूफ़ानी धारा है,

    हर ज़ोर ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है!

    स्रोत :
    • पुस्तक : अंदर की आग (पृष्ठ 89)
    • संपादक : रमा भारती
    • रचनाकार : शंकर शैलेंद्र
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2013

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