शैशव गीत
shaishaw geet
पाप पुण्य को जगत् पथों को
सुख दुःखों को श्लेषार्थों को
ना कुछ जाने प्रसून प्यारे
चार साल के बच्चे न्यारे!
बिजली चमके बदली बरसे
आसमान पर सुरधनु सरसे
वे सब अपने समझ, समझ, निसारे
नाच कूदते मेरे तारे!
वहाँ यहाँ कुछ नहीं लजाते
कहीं कहीं खुद उड़ते जाते
खेल खेलते बिगुल बजाते
अपने मन को खूब सजाते
'चिड़ियाँ' रे रे!
'कलियाँ' रे रे!
हरे-हरे तृण मैदानों में
जलजातों के उन तानों में
नव खेतों में गुड़िया घर में
माँ-बापों की गोदी भर में
देह धूल से केश भार से
दुधमुख से उस नयन सार से
जहाँ कहीं खेला करते
विश्व रूप ले मेला करते
परमात्मा रे!
बच्चे प्यारे!
तुम इस जग के हो प्रभु सारे
तुम ही इसके भाग्य सितारे
तुम्हें भरेगी हँस-ख़ुशी से
भविष्य की प्रभात विभा रे!
ऋतु रानी नव शोभा विलसित
खोले निज पट मांत्रिक मंडित
ग्रीष्मकाल वह कांस्य वृषों की
फूँक चलाए लू साँसों की,
वर्षा ऋतु नद नदी जलों को
मिला जुलाए गाँव थलों को
शरत्काल सब हृदय वादिनी
फैलाए सब ओर चाँदिनी,
हेमकाल निज की लासानी
भर दे चारों ओर हिमानी,
शिशिरकाल की रे शीतलता
सारे जग भरे विकलता—
तुमसे ये जब कभी मिलेंगे
आँख-मिचौनी हाँ खेलेंगे!
सब कालों में जैसे अब के
चाँद चलेगा रास्ते नभ के,
चटक मटक कर फूल खिलेंगे
पवन बाल ले तुम्हें चलेंगे!
मुझे दीखते सारे तारे
रंगबिरंगे ये उजियारे
सभी तुम्हीं में चमक उठेंगे
और तुम्हारे बन बैठेंगे!
अपने गुज़रे उस बचपन के
राग के लिए नव मधुवन के
दुखी हृदय मधु से नहलाते
व्यथित साँस का सिर सहलाते—
'काफी' गाए भय की वीणा
निर्झरिणी का साहस लीना,
लालन पालन करते जाते
अतल वितल को उल्टे धाते
वैतरणी की थाह लगाते
अपने जग से शांति भगाते
भ्राँत वने नित श्रम में पैठे
नाक सिकोड़े उचटे बैठे
मुझे देख कर, हँसी करोगे?
नन्हे मुन्ने!
मेरा गाना इसे धरोगे??
- पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 42)
- संपादक : माधवराव
- रचनाकार : श्री श्री
- प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
- संस्करण : 1985
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