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शाहबेरी, सेक्टर नंबर चार

shahberi, sektar nambar chaar

मनीषा जोषी

मनीषा जोषी

शाहबेरी, सेक्टर नंबर चार

मनीषा जोषी

और अधिकमनीषा जोषी

    रोज़ सुबह पाँच बजे उठती है

    दिल्ली में ग्रेटर नोएडा के

    शाहबेरी, सेक्टर नंबर चार में रहती

    वह एक शादीशुदा स्त्री।

    पहले पति के लिए सुबह का नाश्ता बनाती है

    फिर पति के लिए लंच-बॉक्स तैयार करती है

    फिर बच्चों के लिए अलग नाश्ता

    और फिर बच्चों के लिए अलग लंच-बॉक्स।

    बच्चे चले जाते हैं

    स्कूल की बस में

    और पति जाते हैं दफ़्तर

    डीटीसी की बस में।

    उन सबके जाने के बाद

    घर में सबसे पहले आता है दूधवाला

    वह दूध का पैकेट रखकर जाता है

    फिर सब्ज़ीवाला सब्ज़ियों की टोकरी

    और फिर धोबी आता है

    इस्त्री के कपड़ों की गठरी लेकर।

    कामवाली बाई भी आती है

    थोड़ी इधर-उधर की बातें

    और वह भी चली जाती है—

    झाड़ू-पोंछा करके।

    बस अब शुरू होता है एक दिन

    शाहबेरी की इस शादीशुदा स्त्री का।

    नहीं, सत्यजीत रे की 'चारुलता' नहीं है वह

    जो अब हाथ में दूरबीन पकड़कर

    आँखों पर रंगीन चश्मे लगाकर

    खिड़की पर बैठी रहेगी।

    यह स्त्री तो बख़ूबी जानती है

    कि अगर वह शाहबेरी में नहीं होती

    तो और कहाँ हो सकती थी

    कि अगर वह शादीशुदा नहीं होती

    तो और क्या हो सकती थी

    कि यह एक ख़ाली दिन अगर होता

    तो और कितने सारे दिन

    और कितने सारे शहरों में

    कितने और ख़ाली हो सकते थे।

    और यूँ शाहबेरी में संतुष्ट है

    एक और शादीशुदा स्त्री।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा जोषी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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