सेवा की लगन

sewa ki lagan

दलजीत सिंह

दलजीत सिंह

सेवा की लगन

दलजीत सिंह

और अधिकदलजीत सिंह

    हमारी पुश्तों की परंपरा रही

    करो सेवा सरकार की

    और अपने सरकारी परिवार की

    बहुत ख़ूब है नौकरी

    हो भले चौकीदारी अथवा ऊँची अफ़सरी

    बहुत बराबरी का है रिश्ता

    गुपचुप नाख़ून और मांस का

    तड़पती जनता का

    ब्लैक लेवल के जाम को

    आनंदम सिद्ध करने के वास्ते

    नौकरी कोई हो, छोटी या बड़ी

    स्टूल पर अलसाने

    या कुर्सी पर झूलते रहने की

    क़ुर्बानी देनी ही पड़ती है

    हर पदवी हथियाने की

    कमाई का पौधा लगाने की

    रहती है तीव्र चाह एक बीज की

    एक खेत की, एक बाड़ की

    भले ऊँची दर है हरेक बीज की

    बदलता है हर माह, हर साल

    है यह एक नेशनल इंडेक्स

    कैश नहीं होता कभी

    सरेआम होती है नीलामी

    ऊपर से नीचे मुँहमाँगी

    साथ-साथ बैठती

    चीतों, बाघों की टोली

    जंगल का बादशाह शेर बब्बर

    रखता है सब जानकारी

    अब नहीं आता माल

    डिक्की या कार से

    अब तो छतों तक भरती है

    ख़ाकी पहरों की निगरानी

    कोरी सफ़ेद फूलों लदी

    सुगंध की फुहार में छिपी

    रिहायशगाह सरकारी

    आज है सच्चाई का बोलबाला

    छिपाव नहीं, हर नेकनीयत को

    मिलता है, मनचाहा पद

    सेवा करने का

    अपने अधिकारियों, मंत्रियों की सेवा का

    लेकिन सच्चाई की क़सम

    सेवा का प्रत्येक अवसर

    कैसे मिल सकता है क़ुर्बानी के बिना

    एक टुकड़ा ज़मीन बेचने

    या कोई पुश्तैनी मकान बेचने पर

    सत्यमेव जयते

    सेवा के लिए पहले भी

    नीलामी होती, बोली लगती थी

    अब भी वैसा ही है

    हालात बहुत अच्छे लगते हैं

    फिर भी भविष्य के लिए

    प्रभु ख़ैर करे, पक्का पता नहीं

    ‘सत्यमेव जयते’।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 435)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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