सपने

sapne

विहाग वैभव

और अधिकविहाग वैभव

    विशाल तोप की पीठ पर चित्त लेटकर

    दंगों के के बीच तलवार ओढ़कर सोते हुए

    मणिकर्णिका पर जलाते हुए अपने जवान भाई की लाश

    उठते, बैठते, जागते, दौड़ते हुए

    हममें से हर किसी को सपने देखने ही चाहिए

    सपने, राख होती इस दुनिया की आख़िरी उम्मीद हैं

    सपने देखने चाहिए लड़कियों को—

    सभ्यता के बचपने उम्र

    आत्मा के पूरबी उजास में गुम लड़कियों ने

    ज़रा कम देखे सपने

    नतीजन, धकेल दी गईं चूल्हे चौके के तहखाने

    गले में बाँध दिया गया परिवार का पगहा

    भोग ली गईं थाली में पड़ी अतिरिक्त चटनी की तरह

    गिन ली गईं दशमलव के बाद की संख्याओं-सी

    मगर अब

    जब लड़कियाँ भर-भर आँख

    देख रही हैं बहुरंगी सपने

    तो ऐसे कि

    दौड़कर लड़खड़ाते क़दम चढ़ रही हैं मेट्रो

    लौट रही हैं ऑफ़िस से

    धकियाते, अपनी जगह बनाते भीड़ में

    ऐसे कि लड़कियों का एक जत्था

    विश्वविद्यालयों के गेट पर हवा में लहराते दुपट्टा

    अपना वाजिब हिस्सा माँग रहा है

    ऐसे कि

    पिता को फ़ोन पर कह दी है वह बात

    जिसे वे पत्र में लिखकर कई दफ़ा

    जला चुकी हैं कई उम्र

    जिसमें प्रेमी को पति बनाने का ज़िक्र आया था अभिधा में

    सपने हमें नई दुनिया रचने का हौसला देते हैं

    हममें से हर किसी को सपने देखने ही चाहिए

    सपने देखने चाहिए आदिवासियों को—

    देखने चाहिए कि

    उनके जंगल की जाँघ चिचोरने आया बुलडोजरी भूत का शरीर

    ज़हर बुझे तीर की वार से नीला पड़ गया है

    देखने चाहिए कि

    उनकी बेटियाँ बाज़ार गई हैं लकड़ियाँ बेचने

    और बाज़ार ने उन्हें बेच नहीं दिया है

    और यह भी कि

    मीडिया, गाय को भूल

    कैमरा लेकर पहुँच गया है उनके रसोईघरों में

    और घेर लिया है सरकार को भूख के मुद्दे पर

    सपने हमें हमारा हक़ दें या दें

    हक़ के लिए लड़ने का माद्दा ज़रूर देते हैं

    सपने देखने चाहिए उन प्रेमियों को—

    जो आज अपनी प्रेमिकाओं से आख़िरी बार मिल रहे हैं

    आज के बाद ये प्रेमी

    रो-रोकर अपना गला सुजा लेंगे

    जिससे साँस लेना भी दुष्कर हो जाएगा

    आज के बाद ये प्रेमी

    बिलख-बिलखकर पागल हो जाएँगे

    और आस-पास के ज़िलों में

    युद्ध के गीत गाते फिरेंगे

    इन प्रेमियों को भी सपने देखने चाहिए

    सपने भी ऐसे कि

    ये प्रेमी लड़के डूबते-उतरते ही तालाब में

    कोई हंस हो गए हों

    और बहुत पुरानी तालाब की गाढ़ी काई को चीरते हुए

    बढ़ रहे हों दूसरे घाट की तरफ़

    कि वहाँ इनका इंतज़ार किसी और को भी है

    इन प्रेमियों को सपने देखने चाहिए ऐसे कि—

    इनके समर्पण की कथाएँ

    जा पहुँची हैं दूर देश

    और यूनान का कोई देवता

    इनसे हाथ मिलाने के लिए बेताब है

    सपने हमें पागल होने से बचा लेते हैं

    एक सामूहिक सपना देखना चाहिए इस देश को

    यह देश जो भाले की तरह चंदन को माथे पर सजाए

    विधर्मियों की लाशों पर

    भारतमाता का झंडा गाड़ते हुए

    आगे बढ़ने के भ्रम में

    किसी जंगली दलदल में फँसा जा रहा है

    या जब धर्म चरस की तरह चढ़ रहा है मस्तिष्क पर

    और छींक में रहा है विकलांग राष्ट्रवाद

    तो ऐसे में

    सपने देखना इस देश की जवान पीढ़ी की ज़िम्मेदारी हो जाती है

    एक सपना बनता है कि

    तुम भी जियो

    हम भी जिएँ

    एक ही मटके से पिएँ

    मगर भ्रष्ट करने के आरोप में

    किसी का गला काट लिया जाए

    एक सपना बनता है कि

    तुम अपने मस्जिद से निकलो

    मैं निकलता हूँ अपने मंदिर से

    दोनों चलते हैं किसी नदी के एकांत

    और बैठकर गाते हों कोई लोकगीत

    जिसमें हमारी पत्नियाँ गले भेंट गाती हों गारी

    सपने देश को रचने में हिस्सेदारी देते हैं भरपूर

    और अब

    यह समय जो धूर्त है

    इसमें

    राजा गिरे हुए मस्जिद की गाद पर बैठकर

    सत्ता में बने रहने का सपना देख रहा है

    उल्लू देख रहे हैं सपने

    सालों साल लंबी अँधेरी रात का

    दुनिया को ख़रगोश भरा जंगल हो जाने का सपना

    भेड़िए देख रहे हैं

    और गिद्धों के सपने में देश

    एक मरी हुई गाय की तरह आता है

    तो ऐसे में हमें इस कविता को

    किसी प्रार्थना या युद्धगीत की तरह गाया जाना चाहिए—

    कि विशाल तोप की पीठ पर चित्त लेटकर

    दंगों के के बीच तलवार ओढ़कर सोते हुए

    मणिकर्णिका पर जलाते हुए अपने जवान भाई की लाश

    उठते, बैठते, जागते, दौड़ते हुए

    हममें से हर किसी को सपने देखने ही चाहिए

    सपने, राख होती इस दुनिया की आख़िरी उम्मीद हैं।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विहाग वैभव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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