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संवाद

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शुभा

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शुभा

और अधिकशुभा

    इस दुनिया का सबसे आसान काम रहा है

    या यूँ कहिए कि सबसे मुश्किल

    असल में सबसे आसान काम ही

    सबसे मुश्किल होते हैं

    आसान काम होता है ऐसे

    जैसे ख़ुद हो रहा हो

    और जब वह ख़ुद नहीं होता

    तो वह सबसे मुश्किल काम होता है

    वसंत में संवाद चलता है

    हर ज़र्रे के बीच

    जितनी कोपलें उतनी भाषा

    जितनी तितलियाँ उतने नृत्य

    जितनी ओस उतनी किरणें

    कुछ कम नहीं होता

    कुछ ज़्यादा नहीं होता

    जैसे सब अपने आप होता है

    सब अपने आप होता है

    इसका मतलब होना नहीं है

    इसका मतलब साथ होना है

    जड़ें ज़मीन में चलती हैं

    कोपलें आसमान में

    गहराई और ऊँचाई

    एक ही दिशा होती है

    कैसे बनती है एक ही दिशा

    जिसमें होती हैं उतनी ही भाषाएँ

    जितनी होती है चिड़ियाएँ

    जितनी चींटियाँ

    उतने ही साँप

    गिनती में नहीं अनुपात में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शुभा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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