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कोई दीन व्यक्ति अपने मामा की सुंदर युवती पुत्री से, जो सोने का

कड़ा चाहती थी, किसी प्रकार विवाह करने को उत्सुक था। अमावस की रात

में किसी धनिक के घर से थोड़ा-सा सोना चुराने के कारण वह एक वर्ष

के लिए कारागार में डाल दिया गया।

वहाँ उसने अपने को रोकने वाला एक फाटक देखा, जो पत्थर के

और लोहे की मोटी-मोटी सलाखों से मज़बूत बना हुआ था। इससे वह

उस स्थान से किसी प्रकार निकल भागने में निराश हो गया। (तभी) भूख

और प्यास के कारण दुर्बल शरीर वाले उस व्यक्ति ने एक कुत्ते को देखा।

उसी कुत्ते के द्वारा अपने पराभव की कथा अपनी प्रियतमा तक

पहुँचाने के लिए उसने अपने हाथ के पूए को सू-सू शब्द करके उसे

दिखाया। सूर्य को बादल के बीच आया देखकर उसने प्रेमपूर्वक उस कुत्ते

को अपने निकट बुलाया।

उसकी जीभ से उत्पन्न शब्द को सुनकर वह कुत्ता उसकी ओर जीभ

लटकाकर धीरे-धीरे चलता हुआ आया, उसके हाथ से उस नीरस खाद्य पदार्थ

को खाकर वह परितृप्त हुआ और पूँछ हिलाकर अपने हृदय में उत्पन्न हुई प्रीति

को प्रकट करने लगा।

हे कुत्ते, विश्वसनीय पशुओं में तुम माननीय हो, तुम्हारे ही भाव को

प्राप्त करके पूर्वकाल में शंकर ने वेदों को शीघ्रता से उपलब्ध किया था।

तुम्हारे ही छद्मवेश में (धर्मराज) स्वर्गारोहण के समय पांडवों के सहायक बने।

इसीलिए मैं तुम्हें अपना उपकार करने में समर्थ पाता हूँ।

पश्चिम दिशा में शीघ्रगामी लंबे-लंबे डगों से दौड़ते हुए तुम छः

कोस पर महिष-नगरी पहुँचोगे। तब हे कुत्ते, वहाँ रहने वाली मेरी प्रियतमा

से, जो मेरे वियोग में असहाय हो गई है, मेरी कुशल कहना। प्रेमियों पर

विश्वास करना ही मनुष्यों के लिए भावी शुभ फल का सूचक है।

महलों के अग्रभाग में भोजन करती हुई महिलाओं के कर-कमलों द्वारा

फेंके गए उच्छिष्ट को प्राप्त करने में तुम ज़ोर-ज़ोर से भौंकना और शहर के

कुत्तों के साथ द्वंद्व-युद्ध में कीर्ति-लाभ करते हुए आगे की ओर दौड़ जाना।

देखो, अपने सुहृद् का उपकार करने में कही असावधानी कर बैठना!

अट्टालिकाओं से भरी उस नगरी में तुम होशियारी से घुसना।

रास्तों को नापते समय, हे कुत्ते, तुम चारों ओर नज़र दौड़ाते रहना, जिससे ये तेज़

चलने वाली मोटर गाड़ियों या इक्के-ताँगे अपने पहियों के नीचे कुचलकर

तुम्हें अविलंब यमलोक पहुँचा दें।

सारी महिष-नगरी में घूमते हुए तुम सारिणी नदी के तीर पर थोड़े-से

घरों वाली एक गली देखोगे। वहाँ तुम सूर्यास्त के समय उस घर में जाना,

जिसकी बाहरी दीवार पक्की ईंटों से बनी है और जो बहुत ऊँची नहीं है।

उस घर के बरामदे में, हे मित्र, तुम क्षण-भर ठहरना, मेरी प्रिया के

चलने से पैदा होने वाली मंजीरों की मधुर झंकार सुनकर तुम अपने कानों

को सुख देना और मुझ अभागे का स्मरण करते हुए उसका दुःख दूर करने

का पूरा प्रयत्न करना।

वहीं तुम बछड़ों और बाण-जैसी तीव्रगामी कुतियों के साथ खेलते हुए

पाँच-चार दिन विश्राम करना, और फिर शीघ्रता से मेरी प्रिया का शुभ संदेश

मुझे कहने के लिए दौड़कर लौटना और पूँछ उठाकर अपनी सफलता की

सूचना देना।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 687)
  • रचनाकार : के. वी. कृष्णमूर्ति शर्मा
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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