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संकट

sankat

बिभूति आनंद

अन्य

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और अधिकबिभूति आनंद

    पीपरे रहय,

    जतऽ सुस्ताय जन जनावर

    पूजैत रहथि गामक स्त्री-पुरुष

    निष्ठापूर्वक अपन-अपन आस्था

    चिड़े-चुनमुनीक कलरवसँ

    मानव-मन बहटारैत रहैत छल

    अपन-अपन राग-विराग, साँझ-भोर...

    आइ गाम भऽ कऽ

    निकलल अछि सड़क

    नगरसँ महानगरधरि गेल अछि

    ओतऽसँ लाबि रहल अछि

    बहुतो संदेश,

    भाँति-भाँतिक आहारसँ लऽकऽ

    मनभावन परिधानधरि,

    हमर मनकेँ खरीदार कऽ गेल अछि

    सड़क बनबाक नक्शामे

    ठेकैत छलै पीपर

    अक्खज छल पुरखाक स्मृति

    आइ अस्तित्वमे नहि अछि

    ओतऽ टोलटैक्सवला पैसा असूलैये

    आब हमरा अनचिन्हार मानैये

    परिचिति रहय

    टेक रहय गीतक

    प्रवेश करू, परिछन शुरू

    बहराउ, उदासी-समदाउन...

    आइ हम अपने गाममे

    परिचितिक संगटसँ गुजरि रहल छी

    लगैत अछि जेना, आब एकर

    गुजर-बसरक समय गुजरि चुकल छै...

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्दकेँ नहबैत (पृष्ठ 57)
    • रचनाकार : बिभूति आनन्द
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 2019

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