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समय-सन्दर्भ

samay sandarbh

सुस्मिता पाठक

अन्य

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सुस्मिता पाठक

समय-सन्दर्भ

सुस्मिता पाठक

और अधिकसुस्मिता पाठक

    आब एहिना होइत अछि

    बेसी काल हमरा संग

    एकटा सघन अन्हार

    हमरा चारूकात पसरल रहैत अछि

    उतरैत अछि हमर दिन

    चुप भेल

    पसरैत अछि हमर राति

    चुप भेल

    हमर आँखिक कोर

    निरन्तर भीजल रहैत अछि

    एकटा नदीक प्रवाह जकाँ

    आँखिसँ बहैत रहैत अछि नोर

    अपन तरहथ पर पसरल

    हमर समय-सन्दर्भ

    राग-विराग

    एक्के सुर एक्के लयमे

    गबैत रहैत अछि

    कोनो करुण गीतक पाँती

    मुद एहि सबहक अछैतो

    अपन देह-मोनपर

    बन्हने रहैत छी

    सुख-उल्लासक गाँती।

    स्रोत :
    • पुस्तक : परिचिति (पृष्ठ 55)
    • रचनाकार : सुस्मिता पाठक
    • प्रकाशन : किसुन संकल्प लोक
    • संस्करण : 1997

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