नमक

namak

वाज़दा ख़ान

और अधिकवाज़दा ख़ान

    रंग भी नमक है

    नमक की ही तरह रंग का भी

    कोई व्याकरण नहीं होता

    कई-कई युगों तक बरतने के बाद

    रंगों में उतरता है नमक।

    वही नमक

    जो अनामिका की कविताओं में है कि

    “उन औरतों से पूछो कितना भारी

    पड़ता है उन्हें नमक जो उनके चेहरे पर है।”

    वही नमक जो अस्थि-मज्जा

    तक गला देता है।

    वही नमक जो कम या ज़्यादा होने पर

    बिगाड़ देता है खाने का आस्वाद।

    वैसे तो ज़्यादा मीठा

    ज़्यादा नमक दोनों बिगाड़ देते हैं

    खाने का आस्वाद,

    और जीवन का भी।

    इसी तरह सही-सही मात्रा का

    ज्ञान होने के बावजूद भी

    जरा-सी चूक, जरा-सी बेध्यानी

    बिगाड़ देता है

    कृति का सौंदर्य

    नमक इक योग है, रंग इक ध्यान है

    जितना गहरे उतरो इनमें, जितना गहरे

    बरतो इनको

    हमारे भीतर समाते चलते हैं

    और तो और

    हमारी देह में जाने कितना रंग

    और नमक भरा है

    चाहो तो अपने भीतर उतर कर

    सीख सकते हो

    बरतने का सही-सही फ़लसफ़ा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : वाज़दा ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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