महाकुंभ

mahakumbh

निधीश त्यागी

निधीश त्यागी

महाकुंभ

निधीश त्यागी

और अधिकनिधीश त्यागी

     

    एक

    उसकी अंजलि में
    नदी
    उठती है सूर्य तक

    उसका
    पिता बताता है
    ऐसे

    नदी बहती है

    दो

    सूर्य की तरफ़
    जाती हैं
    घुटने-घुटने प्रार्थनाएँ

    रेत में कई निशान हैं
    पानी में नहीं

    तीन

    पाँवों पर लिखी है यात्रा
    कंधों पर बोझ
    झुर्रियों मे थकान
    पलकों पर धूल

    नदी सिर्फ़ पढ़ती है
    उनकी आँखों में
    टिमटिम
    उम्मीद
    और झिलमिलाती है

    थोड़ी देर तैरता है पानी में दिया
    ग्रह बदलता है अपनी जगह
    करवट लेता है वक़्त
    पुनर्जन्म से मुक्त होते हैं पूर्वज
    शाप से देवता

    तय हो जाता है
    अगली बारिश में
    भी दूब का उगना

    चार

    सिवा नदी के
    सभी लौटते हैं

    सिद्धियों पर सवार मंत्र
    ट्रैक्टर ट्रॉली पर साधु
    विमानों पर देवता
    जन्मकुंडलियों पर नक्षत्र
    बैलगाड़ियों पर पूर्वज

    नदी प्रवाहित है
    प्रार्थनाओं में

    सिवा नदी के
    सभी लौटते हैं।

    पाँच

    ट्रैक्टर ट्रॉली पर रखा है सिम्हासन
    बिराजे है महामंडलेश्वर
    हाथ हिलाते हैं

    टी.वी. कैमरों की तरफ़

    सिर्फ़ भभूत पहन रखी है
    घोड़े की नंगी पीठ पर सवार
    नागा साधुओं के थानापति ने

    पुलिस बैरीकेड के उस तरफ़
    सफ़र से थका
    गालियों से हड़का पूर्वज
    हाथ जोड़ता है

    छह

    अमृतकुंभ की कथा सुनाता है
    जूना अखाड़े का जवान नागा साधु
    कथा मंथन की
    दुष्ट दानवों, कपटी देवताओं की
    कल्पवास के फ़ायदों की
    तभी एक पूर्वज पूछ बैठता है—
    मेरठ ज़िले के किस गाँव के हो महाराज

    साधु चुप हो जाता है
    जलती हुई वेदी और बिखरे भभूत के बीच
    हाथ चिलम की तरफ़ बढ़ाता है

    बरगद पर बने चबूतरे से
    कूदता है बच्चा
    डंगरों को पानी पिलाता है
    दौड़ता है खेतों की तरफ़
    स्कूल की किताबों से दूर

    और अगले कश तक
    गुम जाता है
    महाकुंभ की कथा में

    सात

    गाँव और गोत्र पूछे बिना
    चेहरे से पहचान लेते हैं पूर्वज
    पर कहते नहीं—
    अच्छा तो उसके लड़के हो तुम

    नावों पर सवार प्रार्थनाओं के संगीत में
    मंत्रोच्चार के साथ उठे अर्घ्य में
    आँखों से झाँकती उम्मीद में
    झुर्रियों में धुँधलाती मुस्कान में

    पूरी हो जाती है
    आकांक्षा और पहचान
    अपनी धुरी पर सलामत
    घूमती पृथ्वी की

    अमृत की

    आठ

    वापसी के समय
    बढ़ जाता है
    सफ़र का सामान

    सस्ती प्लास्टिक बोतल में बंद
    नदी

    गर्भवती बहू के लिए
    पूजाघर में प्रसन्न देवता के लिए
    शुद्धिकरण के लिए

    खाट पर खाँसी में
    अटकी जान के लिए

    यही होगी अमृतकुंभ से छलकी बूँद

    नौ

    अपरिचय
    तकल्लुफ़
    पराया
    यहाँ कुछ भी नहीं

    पहले भी कहीं देखा है
    एक एक चेहरे को
    याद नहीं कहाँ

    भीड़ जब हुजूम बनती है
    थोड़ा देर लगती है
    उसे घर समझने में

    बीच में थोड़ा-सा
    लापता हो जाना है
    लौट आना भी
    बीमार माँ की ख़बर
    छपने का इंतज़ार किए बिना

    दस

    यादों में ज़िंदा है
    इलाहाबाद
    निराला की बात करता दारागंज
    शास्त्री जी की अतरसुइया
    जोधाबाई की किलाघाट

    प्रयाग और संगम
    स्मृति में है
    इलाहाबाद की

    महाकुंभ के लिए आने वाले पाँव
    रास्ता देते चलते हैं
    इलाहाबाद को
    रास्ता काटने का
    बुरा नहीं मानते

    इलाहाबाद की यादों में
    ज़िंदा है इलाहाबाद।

    स्रोत :
    • रचनाकार : निधीश त्यागी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    यह पाठ नीचे दिए गये संग्रह में भी शामिल है

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    जश्न-ए-रेख़्ता (2023) उर्दू भाषा का सबसे बड़ा उत्सव।

    पास यहाँ से प्राप्त कीजिए