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रिश्ते

rishte

संगीता मनराल विज

और अधिकसंगीता मनराल विज

    रिश्ते आज के अख़बार की तरह

    सजा के रखे हैं क़रीने से

    काँच की बनी मेज़ के बीचोंबीच

    कल तक बहुत काम के थे

    आज के बाद

    नीचे सरका दिए जाएँगे

    वह पुराने पड़े अख़बार

    कुछ दिनों तक

    रखे रहेंगे नीचे ही तह लगाकर

    एक के ऊपर एक अख़बार

    कल का परसों का

    और फिर उससे से भी पुराना पड़ा अख़बार

    क़रीब दस दिन वहीं पड़े रहने के बाद

    उठाकर पटक दिए जाएँगे

    बालकनी के कोने में

    रद्दी के बने ढेर पर

    फिर कुछ गर्त जमेगी धूल की

    उदासीन रिश्तों की तरह

    दिन, महीने और फिर साल

    कितना सँभालोगे उन रद्दी हुए अख़बारों को

    हमारे रिश्तों की तरह

    मैं रखना चाहती थी

    तुम्हारे और मेरे रिश्ते को

    अपनी पसंदीदा किताब बनाकर

    हमेशा के लिए

    अपने बेड के पास रखी काँच की अलमारी में

    जिसे झाँकती मैं दिन-रात

    कई मर्तबा पढ़ने पर भी

    नया मालूम देता हर एक सफ़्हा

    एहसास कराता हमारे रिश्ते की गर्माहट का

    किताब से कब अख़बार हुआ

    पता ही नहीं चला

    अब बताओ?

    क्या सहेजकर रखे जाते हैं

    रद्दी हुए अख़बार

    स्रोत :
    • रचनाकार : संगीता मनराल विज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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