मेरे गाँव में लोहा लगते ही

टनटना उठता है सदियों पुराने पीतल का घंट,

चुप हो जाते हैं जातों के गीत,

ख़ामोश हो जाती हैं आँगन बुहारती चूड़ियाँ,

अभी नहीं बना होता है धान, चावल,

हाथों से फिसल जाते हैं मूसल

और बेटे से छिपाया घी,

उधार का गुड़,

मेहमानों का अरवा,

चढ़ जाता है शंकर जी के लिंग पर।

एक शंख बजता है और

औढरदानी का बूढ़ा गण

एक डिबिया सिंदूर में

बना देता है

विधवाओं से लेकर कुँवारियों तक को सुहागन।

नहीं ख़त्म होता लुटिया भर गंगाजल,

बेबाक़ हो जाते हैं फटे हुए आँचल,

और कई गाँठों में कसी हुई चवन्नियाँ।

मैं उनकी बात नहीं करता जो

पीपलों पर घड़ियाल बजाते हैं

या बन जाते हैं नींव का पत्थर,

जिनकी हथेलियों पर टिका हुआ है

सदियों से ये लिंग,

ऐसे लिंग थापकों की माएँ

खीर खाके बच्चे जनती हैं

और खड़ी कर देती हैं नरपुंगवों की पूरी ज़मात

मर्यादा पुरुषोत्तमों के वंशज

उजाड़ कर फेंक देते हैं शंबूकों का गाँव

और जब नहीं चलता इससे भी काम

तो धर्म के मुताबिक़

काट लेते हैं एकलव्यों का अँगूठा

और बना देते हैं उनके ही ख़िलाफ़

तमाम झूठी दस्तख़तें।

धर्म आख़िर धर्म होता है

जो सूअरों को भगवान बना देता है,

चढ़ा देता है नागों के फन पर

गायों का थन,

धर्म की आज्ञा है कि लोग दबा रखें नाक

और महसूस करें कि भगवान गंदे में भी

गमकता है।

जिसने भी किया है संदेह

लग जाता है उसेक पीछे जयंत वाला बाण,

और एक समझौते के तहत

हर अदालत बंद कर लेती है दरवाज़ा।

अदालतों के फ़ैसले आदमी नहीं

पुरानी पोथियाँ करती हैं,

जिनमें दर्ज है पहले से ही

लंबे कुर्ते और छोटी-छोटी क़मीज़ों

की दंड व्यवस्था।

तमाम छोटी-छीटी

थैलियों को उलटकर,

मेरे गाँव में हर नवरात को

होता है महायज्ञ,

सुलग उठते हैं गोरु के गोबर से

निकाले दानों के साथ

तमाम हाथ,

नीम पर टाँग दिया जाता है

लाल हिंडोल।

लेकिन भगवती को तो पसंद होती है

ख़ाली तसलों की खनक,

बुझे हुए चूल्हे में ओढ़कर

फूटा हुआ तवा

मज़े से सो रहती है,

ख़ाली पतीलियों में डाल कर पाँव,

आँगन में सिसकती रहती हैं

टूटी चारपाइयाँ,

चौरे पे फूल आती हैं

लाल-लाल सोहारियाँ,

माया की माया,

दिखा देती है भरवाकर

बिना डोर के छलनी में पानी।

जिन्हें लाल सोहारियाँ नसीब हों

वे देवता होते हैं

और देवियाँ उनके घरों में पानी भरती हैं।

लग्न की रातों में

कुँआरियों के कंठ पर

चढ़ जाता है एक लाल पाँव वाला

स्वर्णिम खड़ाऊँ,

और एक मरा हुआ राजकुमार

बन जाता है सारे देश का दामाद

जिसको कानून के मुताबिक़

दे दिया जाता है सीताओं की ख़रीद-फरोख़्त

का लाइसेंस।

सीताएँ सफ़ेद दाढ़ियों में बाँध दी जाती हैं

और धरम कि किताबों में

घासें गर्भवती हो जाती हैं।

धरम देश से बड़ा है।

उससे भी बड़ा है धरम का निर्माता

जिसके कमज़ोर बाजुओं की रक्षा में

तराशकर गिरा देते हैं

पुरानी पोथियों में लिखे हुए हथियार

तमाम चट्टान तोड़ती छोटी-छोटी बाँहें,

क्योंकि बाम्हन का बेटा

बूढ़े चमार के बलिदान पर जीता है।

भूसुरों के गाँव में सारे बाशिंदे

किराएदार होते हैं

ऊसरों की तोड़ती आत्माएँ

नरक में ढकेल दी जाती हैं

टूटती ज़मीनें गदरा कर दक्षिणा बन जाती हैं,

क्योंकि

जिनकी माताओं ने कभी पिसुआ ही नहीं पिया

उनके नाम भूपति, महीपत, श्रीपत नहीं हो सकते,

उनके नाम

सिर्फ़ बीपत हो सकते हैं।

धरम के मुताबिक़ उनको मिल सकता है

वैतरणी का रिज़र्वेशन,

बशर्ते कि संकल्प दें अपनी बूढ़ी गाय

और खोज लाएँ सवा रुपया क़र्ज़,

ताकि गाय को घोड़ी बनाया जा सके।

किसान की गाय

पुरोहित की घोड़ी होती है।

और सबेरे ही सबेरे

जब ग्वालिनों की माल पर

बोलियाँ लगती हैं,

तमाम काले-काले पत्थर

दूध की बाल्टियों में छपकोरियाँ मारते हैं,

और तब तक रात को ही भींगी

जाँघिए की उमस से

आँखें को तरोताज़ा करते हुए चरवाहे

खोल देते हैं ढोरों की मुद्धियाँ।

एक बाणी गाय का एक लोंदा गोबर

गाँव को हल्दीघाटी बना देता है,

जिस पर टूट जाती हैं जाने

कितनी टोकरियाँ,

कच्ची रह जाती हैं ढेर सारी रोटियाँ,

जाने कब से चला रहा है

रोज़ का ये नया महाभारत

असल में हर महाभारत एक

नए महाभारत की गुजांइश पे रुकता है,

जहाँ पर अँधों की जगह अवैधों की

जय बोल दी जाती है।

फाड़कर फेंक दी जाती हैं उन सबकी

अर्ज़ियाँ

जो विधाता की मेड़ तोड़ते हैं।

सुनता हूँ एक आदमी का कान फाँदकर

निकला था,

जिसके एवज़ में इसके बाप ने इसको कुछ हथियार दिए थे,

ये आदमी जेल की कोठरी के साथ

तैर गया था दरिया,

घोड़ों की पूँछे झाड़ते-झाड़ते

तराशकर गिरा दिया था राजवंशों का गौरव।

धर्म की भीख, ईमान की गरदन होती है मेरे दोस्त!

जिसको काट कर पोख़्ता किए गए थे

सिंहासनों के पाए,

सदियाँ बीत जाती हैं,

सिंहासन टूट जाते हैं,

लेकिन बाक़ी रह जाती है ख़ून की शिनाख़्त,

गवाहियाँ बेमानी बन जाती हैं

और मेरा गाँव सदियों की जोत से वंचित हो जाता है

क्योंकि काग़ज़ात बताते हैं कि

विवादित भूमि राम-जानकी की थी।

स्रोत :
  • पुस्तक : नई खेती (पृष्ठ 6)
  • रचनाकार : रमाशंकर यादव विद्रोही
  • प्रकाशन : सांस, जसम
  • संस्करण : 2011

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