प्रेम करने से पहले
मैं चाहूँगा,
मेरे प्रेम करने से पहले
नदियाँ अनवरत हो जाएँ
और पत्थरों से टकराने का सिलसिला थम जाए।
डूब जाने का डर
नदियाँ अपने साथ बहा ले जाएँ
और उनके प्रवाह में डूबा हुआ मेरा पाँव
यह महसूस करे
कि नदियाँ किसी देवता के सिर से नहीं
बल्कि पृथ्वी की कोख से निकली हैं।
मैं चाहूँगा,
नदी के किनारे पर बैठी औरत
जब सुनाए कहानियाँ नदियों की
तब वह त्याग दे देवताओं की महिमा!
वह बताए अपने पुरखों के बारे में
और बताए कि सबसे पहले आकर हम यहीं बसे
नदी हमारा पहला प्रेम थी।
मैं चाहूँगा,
मेरे प्रेम करने से पहले
पेड़ पतझड़ के बाद
वसंत की आवक का दर्शक न रह जाए!
हरेपन के लिए मौसम के ख़िलाफ़
वह नदी और सूर्य को एक कर दे
और महसूस कर ले
घोंसलों और झोपड़ियों के प्रति अपने दायित्व को।
मैं चाहूँगा,
गौरैया और पेड़ जब आपस में बातें करें
तो कहें कि वो आँगन जहाँ तुम्हें दाने मिलते हैं
सृष्टि के आदि में मेरी इन्हीं भुजाओं पर बसे थे
आज पृथ्वी से इस पर ईर्ष्या है मेरी।
मैं चाहूँगा,
मेरे प्रेम करने से पहले
पत्थर हृदय की तरह धड़कने लगे!
खोल दे ख़ामोशी की सारी तहें
जहाँ से कभी नदियाँ गुज़रीं
कभी कोमल तो कभी उखड़ जाने के इतने दबाव के साथ!
जहाँ लोग शिकार की तलाश में घंटों टेक लिए रहे।
दिखाएँ वे निशान
जहाँ रगड़कर आग पैदा की गई
और कहें,
मेरी ख़ामोशी का मतलब यह न लिया जाए कि
आग देवताओं की देन है
मुझे ही तराशकर उनको आकार दिया गया
जबकि उनके भीतर
मैं आज भी मौन हूँ!
मैं चाहूँगा,
मेरे प्रेम करने से पहले
गुफाएँ खोल दें सारे गुफा-चित्रों का इतिहास
जिसे इस सृष्टि के पहले कलाकार ने
अपने हृदय की चित्र-भाषा में लिखा था!
इतने तनाव में कोई पहली बार दिखा था!
उसके आने से पूर्व कई दावानल आए
और नदियों का रंग लाल रहने लगा
तभी इसने छोड़ दिया अपना समूह
कभी वह बर्बर नरभक्षी लगता,
कभी असीम सहृदयी,
लेकिन अंततः इस द्वंद्व में
भाले और तीर लिए लोगों के मध्य
उसने अंकित किया
एक निहत्था मानव जो चलता ही जा रहा था
कहीं किसी ओर!
मेरे प्रेम करने से पहले...
- रचनाकार : रवि प्रकाश
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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