Font by Mehr Nastaliq Web

रत्नगर्भा

ratnagarbha

कलानाथ मिश्र

कलानाथ मिश्र

रत्नगर्भा

कलानाथ मिश्र

और अधिककलानाथ मिश्र

    (छः वे अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन के अवसर पर संयुक्त अरब अमीरात के प्रवास के क्रम में दुबई  में रचित)

    प्रकृति ने संपदा लुटाई,

    तुम्हारे हिस्से में रेत 

    और पठार आया।

    प्रकृति को तुमने

    जी भर कोसा,

    खड़ा-खोटा सुनाया,

    उसने सब सहा।

    प्रकृति मुस्कुराती रही,

    तुम्हें रिझाती रही,

    पर हठी बालक-सा

    तुम खीझते रहे।

    दूसरों की हरियाली पर रीझते रहे।

    अपने भाग्य पर तरस खाते रहे।

    तुम्हारा मुह मलिन देख,

    नील वितान सागर,

    विचलित हो उठा।

    अपना अंक पसार कर

    तुम्हें गले से लगा लिया,

    तुम्हारे माथे पर चुम्बन गढ़ा,

    तुम्हारी आँखें पोछी,

    उस दिन तुमने उस प्रेम को 

    नहीं पहचाना।

    ज़िद्दी बालक की तरह

    उपेक्षा से भरकर,

    तुमने सागर पर ताने मारे।

    तू तो ख़ुद खाड़ा है,

    भला तू मेरे जीवन में 

    मिठास कहाँ से घोल पाएगा।

    सागर की तरंगें बढ़-बढ़ कर 

    तुम्हारे पाँव खँघालने लगे,

    तुम्हें चुमने दुलराने लगे

    लहरों ने प्यार से कहा

    ममता के आँसू का स्वाद भी 

    खाड़ा ही होता है।

    किंतु उसके हृदय में 

    प्यार का सागर हिलोरें लेता है,

    धैर्य रख 

    वसुधा माता है,

    माँ भेदभाव नहीं करती

    सब के हिस्से में कुछ कुछ देती है

    अपने लिए कुछ नहीं रखती।

    यूँ ही नहीं किसी ने कहा है।

    रत्नगर्भा वसुंधरा

    एक दिन धरती के गर्भ से

    तरल उर्जा फूट पड़ी

    तुम्हारे हिस्से में अजश्र संपदा 

    माँ ने उड़ेल दी।

    तुम देखते ही देखते वैभवशाली बन गए।

    रातों रात अपनी क़िस्मत पर 

    ईठलाने लगे, इतराने लगे।

    आसमान को छूता

    सबसे उँचा मुकुट 

    तुमने धारण कर लिया।

    समुद्र को खींचकर

    अपने आँगन में ले आए।

    उसके वक्ष पर द्वीप मालाओं का 

    कसीदा गढ़ लिया।

    जिनके हिस्से में सस्यश्यामली माटी 

    और हरितिमा थी,

    तुम्हारे उन्नत गर्वीले 

    मस्तक को छूने आए हैं

    तुम्हारे वैभव को सराहने आए हैं

    हमारी आँखें फटी की फटी है,

    और सागर की यह बात

    फिर से दुहराने आए हैं

    धैर्य रख,

    माँ भेदभाव नहीं करती

    सब के हिस्से में कुछ कुछ देती है

    अपने लिए कुछ नहीं रखती।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कलानाथ मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

    ‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए