राष्ट्रीयता

rashtriyata

महाराज कृष्ण संतोषी

और अधिकमहाराज कृष्ण संतोषी

    वे अपना लिबास बदल सकते हैं

    पर विचार नहीं

    उनकी लाठी में

    गया है बल

    उनके सपने

    सार्वजानिक हो गए हैं

    उनके बुद्धिजीवियों में

    गया है साहस

    वे लौट आए हैं किताबों में

    वे अपना रंग अब छिपाते नहीं

    उन्हें विश्वास हो गया है

    हवा भी उनके ध्वज के साथ है

    उनके लिए प्रश्नों के उत्तर देना ज़रूरी नहीं

    उनके लिए दरिद्रता के ख़िलाफ़ लड़ना ज़रूरी नहीं

    उनके लिए प्रेम करना भी ज़रूरी नहीं

    उनके सरोकार उस अतीत के साथ हैं

    जो बदरंग हो चुका है

    वे कहते हैं

    हम लड़ेंगे

    हम जिएँगे

    अपने ही रंग के सम्मोहन में

    अब हमें कोई डरा नहीं सकता

    हमने रच डाली है

    देश के लिए नई वर्णमाला

    हाय!

    मैंने यह क्या लिख डाला

    मैंने तो ज़रा सा साहस अर्जित करके

    सिर्फ़ इतना पूछा था

    महाशय!

    आपके पतलून की

    राष्ट्रीयता क्या है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : महाराज कृष्ण संतोषी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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