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पातक किलोल : आस्थाक दर्द

रामानुग्रह झा

अन्य

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रामानुग्रह झा

पातक किलोल : आस्थाक दर्द

रामानुग्रह झा

और अधिकरामानुग्रह झा

    बिहाड़िमे उड़ियाइत पातक किलोल

    कि क्षणमे वृक्ष भागि जाइछ हमरासँ दूर

    कि धूमिल कम्बलसँ वातायनकेँ

    अछि झाँपि देने आन्हर बिहाड़ि ई।

    छोट-पैघ सब तरहक, सबहक पलकेँ

    झाँपि रहल अछि, अनास्थाकेर कण कते,

    कि दृश्य झलफल, अदृश्य, झलफल मार्ग—

    सब अज्ञात, छल जे ज्ञात से अज्ञात तैँ।

    कोन समय ई? साँझ? दुपहर? वा राति?

    भेल पराजय? गतिकेर की आइ कालसँ?

    की थिक ई? संक्रमण अथवा पिपर्यय?

    विध्वंशक सर्किलमे घेरल सबहक प्राण!

    छोट-पैघ वृक्षकेर खसल-झड़ल पात

    कागजी अस्तित्व लऽ अंगदीप पैर पर

    प्रार्थना करैछः 'जागह हे ज्योतिपुंज!

    हमरानहि बरु, बुझा दहक बाट बतहा बिहाड़िकेँ।’

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 188)
    • संपादक : यतेन्द्र कुमार
    • रचनाकार : रामानुग्रह झा
    • प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, बिहार
    • संस्करण : 1971

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