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जनतंत्रक दुर्घटना

रामानुग्रह झा

अन्य

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रामानुग्रह झा

जनतंत्रक दुर्घटना

रामानुग्रह झा

और अधिकरामानुग्रह झा

    फट्! फट्! फट्! फटाक्!

    जनतंत्र टंकी फाटि गेल

    जनताक मोन पर जमल बर्फ

    चेतनाक सूर्यसँ पधिल-पघिल

    कैक क्यूसेक्स जल-प्लावन कयल।

    उठल अछि शब्दक भयंकर बिहाड़ि

    गीड़ लेत हमरा सबकेँ,

    किताबक फोहार, अखबारक वर्षा

    भाषणक नदी बहसक नाला,

    सेमिनारी नहर, आश्वासनक बान्ह,

    विधानसभाक पोखरि, संसदीय डाबर

    सब उधिया रहल अछि

    उमड़ रहल अछि हमरा चारुकात।

    हम सब भरि मुखहर पानिमे दहाइत छी।

    गाम शहर, गली सड़क,

    खेत फैक्ट्री, घर ऑफिस—

    शब्दक एहि बाढ़िमे

    दहाइत भसियाइत सब किछु

    परस्पर टकरा कऽ टूटि रहल अछि—

    योजनाक फाइल इतिहासक पात

    भविष्यक कंट्रैक्ट विज्ञानक प्रबन्ध।

    हम कतय छी? कतय जायब हम?

    डल झील कि ट्राम्बेक रिएक्टर

    हाजीपीरक चौकी कि ऊटीक जेल?

    से पूछैत छथि श्री...को औ...?

    मनुक्ख कि राशन कार्ड?

    उत्तर छैक क्रान्ति क्रान्ति

    बैसैत छथि जा क‍ऽ

    चाहक दोकानमे?

    स्रोत :
    • पुस्तक : मैथिलीक नव कविता (पृष्ठ 190)
    • संपादक : रामकृष्ण झा ‘किसुन’
    • रचनाकार : रामानुग्रह झा
    • प्रकाशन : सांस्कृतिक विभाग, बिहार
    • संस्करण : 1971

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