राजा का बाजा
raja ka baja
बात थोड़ी पुरानी है—
प्रजा ने अपने वास्ते एक राजा चुना
ख़ुद को जनसेवक कहते हुए
चुना हुआ राजा सिंहासन तक पहुँचा
सिंहासन को शीश नवाकर प्रणाम किया।
राजा की इस चपलता पर
प्रजा लहालोट हुई
उसने राजा का धर्मावतार कहा
राजा हँसा
सिंहासन पर थोड़ा और धँसा...
धीरे-धीरे दिन बीते
साल बीते
ऐसे ही दस-बीस साल होने को हुए...
राजा-राज करता रहा
प्रजा खटती रही
राजा जैसे-जैसे हँसता जा रहा था
प्रजा वैसे-वैसे फँसती जा रही थी
राजा को
ख़ुद के लिए ताली पिटने वाली प्रजा अच्छी लगती थी
ऐसी प्रजा को देखकर
राजा उमंग से भर जाता था
ऐसी प्रजा उसे अच्छी लगने लगी...
राजा ने आदेश जारी किया—
‘राष्ट्र को समर्पित प्रजा की ज़रूरत है’
ऐसा कहते हुए उसने
ताली पिटने वाली
राजा का बाजा बजाने वाली
राजा के बनाए ‘राग अगिन’ धून पर नाचने वाली
प्रजा को राष्ट्र की प्रजा की उपाधि
देते हुए उस प्रजा को राष्ट्र के लिए चुन लिया
राजा ने—
प्रश्न पूछने वाली
उसके काम पर निगाह रखने वाली प्रजा
को ग़ैर-ज़रूरी घोषित कर दिया
इस प्रजा को देश छोड़ने का आदेश दिया गया
ग़ैर-ज़रूरी प्रजा देश खाली कर रही थी
राजा अपने निर्णय पर इतरा रहा था
सिंहासन पर बैठा
वह बीन बजा रहा था...
- रचनाकार : जनार्दन
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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