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रह जाना एक शहर में

rah jana ek shahr mein

मनीषा जोषी

मनीषा जोषी

रह जाना एक शहर में

मनीषा जोषी

और अधिकमनीषा जोषी

    यह शहर कभी बहुत कुछ था मेरे लिए।

    मुझे अच्छी लगती थी

    इस शहर के पीने के पानी में

    मिलाए जाते क्लोरीन की मात्रा।

    मैं सूँघती थी

    इस शहर के सिनेमाघरों की

    घिसी-पिटी सीटों पर फैला पड़ा हुआ

    सस्ता भाईचारा।

    मैं जानती थी

    इस शहर के सबसे बड़े बिलबोर्ड के पीछे

    अपने घोंसले बनाकर रहते हुए

    कबूतरों की कई पीढ़ियों को।

    लेकिन फिर एक दिन रात के समय

    इस शहर के एक आम स्विमिंग पूल की

    हैलोजन लाइट्स की रोशनी में

    चमकती हुईं नीली टाइल्स पर

    मेरा पाँव फिसल गया

    और वे मुझे पी गईं

    नीले, गहरे समंदर की तरह।

    रोज़ सुबह

    स्विमिंग पूल के पानी में गिरते पत्तों को

    एक बड़ी जाली से उठाकर

    सफ़ाई करने आता कर्मचारी

    कब यह जान पाएगा

    कि मैं हूँ यहाँ

    इस शहर के शिकंजे में

    सार्वजनिक स्विमिंग पूल की

    नीली टाइल्स के नीचे पड़ी हुई।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनीषा जोषी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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