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रात और अंगूरी मौसम

raat aur anguri mausam

अनुवाद : रमेश कौशिक

कार्लो क्लाद्ज़े

अन्य

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कार्लो क्लाद्ज़े

रात और अंगूरी मौसम

कार्लो क्लाद्ज़े

और अधिककार्लो क्लाद्ज़े

    अंगूरी-मौसम

    अंगूरी-मौसम

    मदद पड़ौसी की करने में

    आता है आनंद परम

    जब रस प्रसन्न हो कल-कल करता

    मुक्त-भाव से जाकर भरता

    सौम्य सुरा-घट

    रात झूमने लगती है

    मस्ती में आकर

    जैसे ही गाँवों से उठते

    गीतों के स्वर

    प्याले से किस तरह छलकता है—

    वह अंगूरी-रस

    प्यासे अधरों को छूकर

    भाँति-भाँति की

    तीखी गंधें सुरा-घटों की

    ओढ़े हुए रात की छाया

    एक तरह से

    सबके सिर झनझना रहे हैं

    मस्ती में जाते घर वापिस झूम रहे हैं

    पत्तों की परछाई भी मरमरा रही है

    पथ पर जाते हुए

    हवा ने तुमको देखा

    पकड़ तुम्हारी बाँह,

    ले चली बहका करके

    लेकिन वह तो ख़ुद ही बहक गई

    किए इशारे तुमने

    कैसे मदद भला करती

    वह केवल हँसती।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 167)
    • रचनाकार : कार्लो क्लाद्ज़े
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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