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पुनश्च

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यानोश पिलिंस्की

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और अधिकयानोश पिलिंस्की

    (पियर एम्मानुएल के लिए)

    याद है तुम्हें अब भी? चेहरों पर।

    याद है तुम्हें अब भी? रीती खंदक।

    याद है तुम्हें अब भी? ढरक रही है।

    याद है तुम्हें अब भी? खड़ा हूँ धूप में।

    तुम 'पेरिस जर्नल' पढ़ रहे हो।

    तब से जाड़ा है, जाड़े की रात।

    तुम मेज़ सजा रहे हो मेरे सामने।

    बिस्तर बिछा रहे चाँदनी रात में।

    साँस रोक कपड़े उतार रहे तुम

    वीराने घर की रात में।

    उतर गई क़मीज़ और कपड़े।

    मज़ार के नंगे खंभे-सी तुम्हारी पीठ।

    व्यथा में शक्ति की प्रतिमा।

    कोई है ?

    जागते सपने :

    अनुत्तरित

    शीशों के कमरों से गुज़रना।

    तो क्या यह मेरा चेहरा है? वही यह चेहरा है?

    रोशनी, ख़ामोशी, फ़ैसला किरकिराता है।

    उड़ता आता पत्थर मेरे चेहरे पर

    मानो बर्फ़ सफ़ेद शीशे से।

    और घुड़सवार! घुड़सवार!

    चुभता है धुँधलका

    काट-काट खाता है दीया

    मर्तबान पर ढरकती

    पतली जल-धार।

    खटखटा रहा हूँ बंद द्वारों को।

    तुम्हारा अँधेरा कमरा मानो बारूदी सुरंग।

    दीवारों पर भभकती है ठंड।

    दीवार पर मलता हूँ अपनी रुलाई।

    बचा लो मुझे बर्फ़-लदे छप्परो!

    चमक उठे, जो है अनाथ,

    शून्य-सूर्य उगे उससे पहले।

    चमक उठे व्यर्थ ही!

    सिर जा टिका है दीवार से।

    चारों तरफ़ उठती है

    क्षमा की मुट्ठी भर बर्फ़—

    दे रहा नगर एक मृतक को।

    मैं तुम्हें प्यार करता था! एक चीख़, एक आह,

    फुर्र-से उड़ा बादल ओझल हो रहा है।

    घुड़सवार बढ़े आते हैं झमाझम

    घनी भोर में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दस आधुनिक हंगारी कवि (पृष्ठ 54)
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक गिरधर राठी, मारगित कोवैश
    • प्रकाशन : वाग्देवी प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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