पूजा देश की करूँ या वासियों की?

puja desh ki karun ya wasiyon kee?

गुरमुख सिंह मुसाफ़िर

गुरमुख सिंह मुसाफ़िर

पूजा देश की करूँ या वासियों की?

गुरमुख सिंह मुसाफ़िर

और अधिकगुरमुख सिंह मुसाफ़िर

    रहा हूँ वतन का मैं अब तक पुजारी

    अभी तक नहीं उतरी इसकी ख़ुमारी

    कि गुज़रे भले यों यहाँ उम्र सारी

    लेकिन प्रबल सोच रहती है जारी

    मेरे भाव यह जानने को हैं आतुर

    वतन पूजूँ या पूजूँ मैं वतन वाले?

    मेरा देश ही तो मेरी जागीर है

    मेरी आत्मा का यही तो शरीर है

    आदि यही मेरा आख़िरी नीर है

    मुझे इसका दाल दलिया भी खीर है

    जाने क्यों चिंता को यों मन उछाले

    वतन पूजूँ या पूजूँ मैं वतन वाले?

    देशवासी के मन में है जो भी हरारत

    इसे मान बैठे कोई शरारत

    यह भी बूझने योग्य है इक इबारत

    कुटिया में ठहराव है इक इमारत

    कई प्रश्न इस सिलसिले ने उछाले

    वतन पूजूँ या पूजूँ मैं वतन वाले?

    वतन वालों ने ही तो दी थी दुहाई

    कि जिसने वतन में नई रूह जगाई

    हुई दूर तक जिसकी ऐसी सुनाई

    वतन से विदेशी ने गठरी उठाई

    अभी तक यही प्रश्न पीछे है छूटा

    वतन पूजूँ या पूजूँ मैं वतन वाले?

    लगे यों कि सीने में ही तीर मारा

    यही भ्रम है हमने क्या-क्या बिसारा

    मन कोई अनचाहे ख़्यालों में खोया

    संशय ने कैसा यहाँ बीज बोया

    अभी आओ निर्णय, हम इस पे करा लें

    वतन पूजूँ या पूजूँ मैं वतन वाले?

    यों लगता है जैसे कोई चोट लगती

    कि तीरों की सीधी कसक है मचलती

    दुश्मन है कोई, कोई अदावत

    कोई माने रोना, तो कोई बग़ावत

    प्रकट हो रहे सब जो अरमाँ थे पाले

    वतन पूज लूँ या पूजूँ मैं वतन वाले?

    वतन के पेट में छिपी है खानें

    वतन वाला है भूखा निकले क्यों जानें

    वतन के चरणों में नदियाँ सुहातीं

    वतन वाले प्यासे, तो है जान प्यासी

    वतन वालों के नहीं, कुछ भी हवाले

    वतन पूजूँ या पूजूँ मैं वतन वाले?

    वतन के पवन-पानी में एक पीड़ा

    वतन वाला है करता जो भी क्रीड़ा

    वतन का है पाँव संग अमीरों के लगता

    वतन वाले का कुर्ता फटेहाल रहता

    ये पूँजी पूजूँ या पूजूँ निवाले

    वतन पूजूँ कि पूजूँ मैं वतन वाले?

    वतन की है देह आत्मा वतन वाली

    वतन के पुष्पों में महक शोभा वाली

    वतन की नज़र रोशनी वतन वाला

    वतन बूढ़े का सहारा वतन वाला

    वतन वाले को अलग कर क्यों उछाले

    वतन पूजूँ कि पूजूँ मैं वतन वाले?

    असल में वतन वाला ही तो वतन है

    वतन-माला का मनका यह इक रत्न है

    वतन जैसा भी है, इसी का वतन है

    सिर्फ़ ज़ज़्बा नहीं, यह सच्चा कथन है

    बनाई जिसने राय जैसी बना ले

    वतन पूजूँ कि पूजूँ वतन वाले?

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 58)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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