इस कमरे में मकड़ियों ढेर सारे के जाले हैं
ताना-बाना बुनकर उन्होंने अपना जाला बनाया है
सभ्यता की ओर अग्रसर होते हुए
इन जालों को समय समय पर साफ़ करने की परंपरा बनी हुई है
क्या मेहनतकश मकड़ियों को ये पता होगा
कि इनका कमरों में होना दरिद्रता का प्रतीक है
इनके रैन बसरों से लक्ष्मी रूठ जाती हैं
अब लक्ष्मी के रूठ जाने में कितनी सच्चाई है
पता नहीं
लेकिन नास्तिक इंसान भी लक्ष्मी के रूठ जाने से डरता है
तो उन जालों की सफ़ाई हुई
सारा ताना-बाना कचरा हो गया
सारी मकड़ियाँ तीतर बितर हो गईं
परिवार बिछड़ गया
समचार में लोगों के घरों में बुलडोज़र चलने की ख़बरें हैं
लोग अपनी संपत्ति अपने सामान मलबों में टटोल रहे हैं
एक लड़की अपनी किताबें
औरत घर के बर्तन, बच्चों के कपड़े
आदमी कुछ ज़रुरी काग़ज़ात खोज रहा है
और सर पीट-पीट कर रो रहा है
सरकार की नज़रों में हम भी मकड़ियाँ हैं
हमारा घर उझाड़ कर वे भी देश को सभ्य और समृद्ध बनाने की ओर अग्रसर हो रहे हैं।
- रचनाकार : पूर्णिमा साहू
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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