प्रेम-प्रस्ताव

prem prastaw

आयुष झा

आयुष झा

प्रेम-प्रस्ताव

आयुष झा

और अधिकआयुष झा

    मैं रखता हूँ प्रस्ताव तुम्हारे समक्ष

    कि तुम प्रस्तावक की तरह

    प्रस्तावित कर सकती हो मुझे

    तुम्हारा प्रेम-प्रस्ताव

    मैं रखता हूँ प्रस्ताव

    कि तुम लिखवा सकती हो

    मुझसे प्रस्तावना

    ख़्वाहिशों की डायरी में

    है तुम्हारी ख़्वाहिश कि हमारा प्रेम है

    हर प्रस्ताव से परे

    कि तुम्हारे तसव्वुर में जिया गया हरेक लम्हा

    है स्वयं में एक प्रस्ताव दिवस

    जैसे लहरों की पीठ पर तुम

    साँसों से लिखती हो प्रस्तावना

    कि सिगरेट छोड़ देनी चाहिए

    उस बेवक़ूफ़ मछुआहे को

    अलसाने लगा है तुम्हारी खिड़की का पर्दा

    कि मेरे स्याह होंठों को तुम

    लिखती हो हिमखंड

    पनियाहे मेघ में ताकती हो मेरी आँखें

    कि अचानक से डूबता है तरेला

    मेरी बंसी का

    और तुम तकिए पर

    हसोथने लगती हो माछ

    सुनो,

    गिलहरी की तरह

    मेरी नींद कुतरने वाली

    शरारती लड़की!

    अपनी उबासी का एक हिस्सा

    मुझे भी दे दो उधार

    या कर लो ख़्वाबों की अदला-बदली

    कहो, कहाँ करना होगा मुझे दस्तख़त?

    जबकि गिरवी रखा मैंने मेरा मैं,

    बेताबी

    पागलपन

    सिगरेट का पहला कश

    मेरी संवेदना

    और सौंपता हूँ तुम्हें मेरा प्रेम-प्रस्ताव

    मैं रखता हूँ प्रस्ताव

    कि तुम जागती रहो मेरी आँखों में

    जब तलक ज़िंदा हूँ

    और मेरी नींद को मिले पनाह

    तुम्हारे तकिए पर।

    स्रोत :
    • रचनाकार : आयुष झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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