प्रेम का आना
prem ka aana
प्रेम आएगा जीवन में
जब तुम कम देख सकोगे
उसका वादा है
जो भी देगा उम्दा होगा
जब तुम भूल चुके होगे
गर्म तलहती, नर्म रोटी
और
पत्ते से गिरते बूँदों का इंतज़ार
प्रेम आएगा जीवन में
जब तुम नहीं जान सकोगे
प्रलाप, रूदन, और हार्दिक यंत्रणा
वो आएगा दबे पाँव
निरिक्षण करेगा तुम्हारे अस्तबल का
जहाँ शहंशाहत बंधी होगी
वो चरवाहे के डँडे-सा होगा
जिसकी महत्ता उसके होने भर से कत्तई नहीं होगी
वो सबसे कमज़ोर घास की उस जड़-सा होगा
जिसे अभी-अभी एक बैल ने रौंदा है
वो चुल्लू भर उस छींट-सा होगा
जिसने ज़मीन से उसका सूथड़ापन चुरा लिया है
प्रेम आएगा जीवन में मगर असमय अथवा कुसमय
संध्या बेला में
दिये के आख़िरी तेल आयतन में
बची रहेगी उसकी आँच
उसका चमकना दिखेगा तुमको अस्त होते सूरज में
तब जब तुम समझना भूल चुके होगे चंद्रमा
वो आएगा जीवन में ऐसे
जैसे कि औकात से बाहर कीमती घर को
देखता है इंसान
उसका होना मिस्त्र है
जैसे पिरामिड की ऊँचाई जितनी एक छत की कल्पना
प्रेम ग्रहों की सांकेतिक अवस्था नहीं
है नीम के पत्तों पर शहद लार-सा
प्रेम आएगा जीवन में मगर उस तरह नहीं
कुछ इस तरह कि साँस छूटती हुई
और जीवन दीखता हुआ-सा!
- रचनाकार : प्रेमा झा
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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