Font by Mehr Nastaliq Web

प्रेम

prem

अनुवाद : रमेश कौशिक

मैं नहीं लूँगा तुम्हारा नाम

करना माफ़

नहीं लेना चाहिए मुझको तुम्हारा नाम

हृदय में मेरे बहुत गहरे

यह चाह के और प्यार के जो शब्द होते हैं

मेरी जिह्वा जलाते हैं...

होती एक बेचैनी विचारों में

तुम्हारे साथ मरने के लिए

भाग्य मेरा है तुम्हारा

और जीवन-यात्रा मेरी

भवितव्य तेरी...

तुमसे मिला जब मैं

एक लड़का था

हृदय तुमको दे दिया था

दिन सभी तुमको समर्पित थे

सिखाया था तुम्हीं ने साहसी बनना

तुम्हारी दृष्टि मोहक थी

गहरी पारदर्शक

देखती भावी युगों को

अपनी सौम्य औ' गंभीर आँखों से

तुम्हारे मुदित दीपित दृगों का आकर्ष

इतना था

कि मेरी चेतना चकरा रही थी

आश्चर्य से

वक्ष हाँफ रहा था हर्ष से

और तभी से एक भव्य हिलोर

उठ रही है मेरे हृदय और मस्तिष्क में

जिससे पनपता है प्यार

घेरता जो सभी लोगों को

और जीवन ने दिखाए हैं मुझे

चेहरे अनेक

कठिन है कहना—

कि कोई किस तरह से बड़ा होता गया

दिन-प्रति-दिन

और जान गया प्रेम-घृणा दोनों को

तुमसे अभिभूत हो

एक उत्तेजित शूरवीर की-सी

मुझ में जलन है

धड़कन हो जाती तेज़

देखकर वे आँखें

जो चाहती हैं तुम्हारा अपकार

वह दृष्टि जो तुम पर पड़ती है...

मेरी निष्ठावान प्रिये!

तुम अपने आप जानो-पहचानो :

इस पापी धरती पर

प्रेम और निष्ठा ही रहते हैं जीवित

मेरे चेहरे पर पहले ही

वर्षों की खुरदरी छाप है

और वृद्धावस्था

अभागी अवश्यंभावी

नज़दीक है अब मेरा रास्ता

ज़िंदगी ने बड़ी कठोरता से

ली है मेरी परीक्षा कई बार

लेकिन पहले ही जैसा गहरा और पवित्र

मेरा प्यार-बीस वर्षों का!

फलता-फूलता प्यार!

यह उड़ाता है मुझे

अपने शक्तिशाली पंखों पर

बनाता है कठोर अपने महा भार से

ख़ुशी का नहीं है कोई रास्ता इसके पास

मुझे धिक्कारा गया है

अपने इस ख़ूबसूरत पाप के लिए

लेकिन मैंने नहीं की कोई भी आपत्ति

एक बार भी नहीं पिनपिनाया

चीख़ा-चिल्लाया

तुम्हारे लिए उठाई

बहुत-सी परशोनियाँ

और कितने ही दिन जोखिम में डाला

सबसे अधिक अधिकार है मुझ पर तुम्हारा

कर नहीं सकता हूँ तुमसे विश्वासघात

मेरी निष्ठावान प्रिये!

तुम अपने आप जानो-पहचानो

प्रेम और निष्ठा ही रहते हैं जीवित

इस पापी धरती पर

अपनी वहशी आँखों से

युद्ध अब दिखा रहा अपना उन्माद

ऐसे में रह सकता हूँ मैं जीवित

सिर्फ़ तुम्हारी आशा और प्यार से।

स्रोत :
  • पुस्तक : बल्गारियाई कविताएँ (पृष्ठ 52)
  • संपादक : रमेश कौशिक
  • रचनाकार : ह्रिस्तो रादेव्स्की
  • प्रकाशन : पराग प्रकाशन
  • संस्करण : 1985

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY