प्राणहंता जनु बनू हे देह
pranhanta janu banu he deh
एकटा सीमा-रेखामे बान्हल जिनगी
एकटा वृत्तक आवृत्त दैत बेर-बेर
थाकल सन मनः स्थिति
आ, पाकल सन मन
मुदा, काँचे—
बासि भातक गंधयुक्त मादकतामे डुबैत
ओंघराय जयबाक इच्छा होइत अछि
कोनो धुरिआयल बाटक कात मे।
मुदा,
इकाइक एकटा मापदण्डक रक्षार्थ
सामाजिक अंकुशसँ बचैत-बचैत
मन आ बुद्धिक निरंतर द्वन्द-युद्ध मध्य
जर्जर भेल जाय रहल अछि
हमर जड़ देह आ मुक्त प्राण!
हे जड़ देह हमर,
अहाँ जनिकर छी
तनिके लग रहू
हमरा कोनो विरोध नहि,
तारतम्य नहि,
निषेध नहि,
मुदा,
मुक्त-प्राणकेँ एना कियैक जकड़ने छी?
जोड़ तँ छी हाथ फेर देह,
विचरय दिअ प्राण-पाखीकेँ
इच्छा-आकांक्षाक पाँखि बलेँ
बैसय दियौक
सुभग सुरभियुक्त कोनो डारि पर अपना मने
शंका आ नियंत्रणक फाँनी लगाय
प्राणहन्ता जनु बनू हे देह,
हाथ जोड़ैत छी!
- संपादक : बालमुकुन्द
- रचनाकार : हंसराज
- प्रकाशन : ई-मिथिला
- संस्करण : 2018
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