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संक्रमित सम्बन्ध

प्रणव नार्मदेय

अन्य

अन्य

प्रणव नार्मदेय

संक्रमित सम्बन्ध

प्रणव नार्मदेय

और अधिकप्रणव नार्मदेय

    किछु सम्बन्ध भ' जाइछ

    जिनगीक नहसूर

    जँ गड़ि जाय मोनमे

    अहं कि अविश्वासक खैंक

    नहि निकालल जाय ओकरा

    समय अछैत

    भ' जाइछ

    संवादहीनताक पकोहि

    भरि जाइत अछि

    अवसाद, इर्खा, अविवेक घृणाक पीज

    जँ नहि हो इलाज एकर

    धैरज, विवेक सिनेहक औखधिसँ

    कएक बेर

    अबडेरि देल जाइछ

    उचित संवादक मलहम-पट्टीकेँ

    भ' जाइत अछि मारुक

    संक्रमित करए लगैत अछि

    जिनगीक देहकेँ

    एहिसँ पहिने कि

    होमय लागय संक्रमित आनो सम्बन्ध

    कि

    मरय लागय जिनगीक सभ सपना

    मोनक जिजीविषा एहि संक्रमणसँ

    कोनो बेजाय नहि जे भ' जाइ बरू फराक

    ओहि संक्रमित सम्बन्धसँ

    जेना कि काटि देबए पड़ैछ

    असाध्य कैंसरसँ संक्रमित अंग कोनो

    देहसँ ककरो

    जिउबाक आसमे

    आखिर

    एकटा सम्बन्धक कीमत पर

    कोना मारल जा सकैछ

    जिनगीक सभटा सम्बन्ध सपना!

    स्रोत :
    • पुस्तक : विसर्ग होइत स्वर (पृष्ठ 40)
    • रचनाकार : प्रणव नार्मदेय
    • प्रकाशन : नवारम्भ, पटना
    • संस्करण : 2017

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