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सपना देखैत आँखि

प्रणव नार्मदेय

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प्रणव नार्मदेय

सपना देखैत आँखि

प्रणव नार्मदेय

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    आँख

    रहैत अछि सदिखन सपनायल सन

    दिन हो वा राति

    देखैत अछि सपना

    नेहसँ बान्हल परिवारक

    सुख-शान्तिसँ भरल घरक

    सिनेहसँ जुड़ल दर-दियादक

    प्रेम विश्वाससँ गछारल गामक

    अप्पनक सुख लेल

    संसार छोड़बाक सपना

    त' संसारक सुख लेल

    अपनहुँकेँ त्यागक सपना

    देखैत अछि आँखि

    आँखि भरल उछाहसँ

    जाहिखन रहैत अछि

    हीत-मीत, सर-समाजक बीच

    आँखि ग’जल सिनेहसँ

    जाहिखन रहैत अछि

    सर-कुटुम्ब, सर-समांगक संग

    आँखि जरल अंगोरसँ

    जँ देखल कत्तहु

    पाखंड, अनीति अन्याय

    आँखि सजल नोरसँ

    जँ होइछ कत्तहु

    बेबस, बेकल अनुपाय

    आँखि

    संजोगैत अछि पियास

    एकटा सपना पुरलाक बाद

    नव-नव सपना देखबालेल

    आँख

    संजोगैत अछि आस

    एकटा सपना टुटलाक बाद

    विपरीत समयसँ लड़बा लेल

    मीत!

    जँ बुझ' चाही हमरा

    त' देखू नहि हमर

    घर-घरारी, कपड़ा-लत्ता, जुत्ता-छत्ता

    आइद-ओकाइद कि जर-जथा

    बरू देखू एहि

    छोट आँखिक पैघ-पैघ सपना

    ओकरा साँच करबाक निस्सन जिद्द

    आँखिक अन्तिम उजास तक

    पैरुखक अन्तिम साँस तक

    कि

    तकरा बादो चाहब हम

    जे भेटै आँखि

    कोनो ज्यातिहीन सपनजीबीकेँ

    जें कि देखय

    आँखि

    नव-नव सपना

    इएह थिक अन्तिम साँच

    एहि सपना देखैत आँखिक।

    स्रोत :
    • पुस्तक : विसर्ग होइत स्वर (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : प्रणव नार्मदेय
    • प्रकाशन : नवारम्भ, पटना
    • संस्करण : 2017

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