धाराक विरुद्ध
धाराक विरुद्ध
सर्वत्र उफनि रहल छैक आक्रोश
पहिचान ओ स्वाभिमानक हेतु
बुलंद भऽ रहल छैक आवाज
ओ आवाज, जे मुर्दा छलैक काल्हि धरि
आवाज जे शोषित आ दमित छलैक
आइ बर्खहु बाद
उठल छैक आक्रोशक बिगुल फूकैत
घरक घर आ गामक गाम
चेतनाक चक्रवात उठबैत
देखियौ, दूर सड़कपर...
उमड़ि पड़ल छैक मनुसागर
खेतक आरिये-आरि
आ पहाड़क भीर-पाखा होइत
गामक कच्ची सड़कपर धूरा उड़बैत
आ बुलंद करैत इन्कलाब केर स्वर
चलैत आबि रहल छैक जननायक सभ
निःसन्देह
बर्खोक मौनता
अचानक कोलाहलमे परिणत नहि भेलैक अछि
बर्खोक गुम्मी
अचानक स्फुटित नहि भेलैक अछि
शब्द बुलंद करबामे समय लगलैक
मुदा जागि उठल छैक जनता
एकजुट भऽ अपन पहिचान हेतु
अधिकार हेतु
संघीय व्यवस्था हेतु
नहि बँटि सकैत अछि आब कोनहुँ दर्जामे
ने झुकि सकैत अछि
नहि छैक स्वीकार्य आब
केन्द्रबला सभक हुकुमी शासन
किन्नहुँ नहि
शोषक आ सामन्तवादी टुटपूजिया सभकेँ
हाक दैत
ललकार करैत
उठल छैक
व्यवस्थाक विरोधमे
सिमान्तकृत सभक एक स्वतन्त्र धाराक स्वर
एक बुलन्द स्वर
धाराक विरुद्ध।
- पुस्तक : धाराक विरुद्ध (पृष्ठ 19)
- रचनाकार : विजेता चौधरी
- प्रकाशन : नवारम्भ
- संस्करण : 2019
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