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पियानो पर एक संगीत-रचना

piyano par ek sangit rachna

अनुवाद : सुरेश सलिल

निकानोर पार्रा

अन्य

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निकानोर पार्रा

पियानो पर एक संगीत-रचना

निकानोर पार्रा

और अधिकनिकानोर पार्रा

    चूँकि एक आदमी की ज़िंदगी, एक फ़ासले पर,

    ज़रा-सी कार्रवाई के सिवा कुछ भी नहीं,

    कुछ भी नहीं, शीशे में दमकती ज़रा-सी ओस के सिवा;

    चूँकि दरख़्त थरथराते साजो-सामान के सिवा कुछ भी नहीं,

    कुछ भी नहीं—हरदम चलती फिरती कुर्सियों-मेज़ों के सिवा

    (जैसे कि ख़ुदाई कुछ भी नहीं ख़ुदा के सिवा);

    चूँकि हम महज़ किसी को सुनाने को नहीं बतियाते

    बल्कि इसलिए, कि अगले भी बातें करें—

    और गूँज सिर चढ़कर बोलती है उन आवाज़ों के

    जो उसे देती हैं जनम :

    चूँकि उस बाग़ में, जो हवाओं से बाग़-बाग़ है,

    इस बदहाली से राहत तक नहीं मिल पाती,

    पेश्तर मरने के, इक पहेली हमें सुलझानी है

    ताकि फिर से वजूद में लाया जा सके इस शख़्स को

    जिसने औरतों के साथ बेहद थका डाला है अपने होने को :

    चूँकि वहाँ जहन्नुम में एक जन्नत भी है

    इजाज़त दें मुझे भी थोड़े-से काम निबटाने की :

    मैं अपने पाँवों से एक शोर पैदा करना चाहता हूँ

    मैं अपनी रूह को उसका सही जिस्म देना चाहता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : रोशनी की खिड़कियाँ (पृष्ठ 271)
    • रचनाकार : निकानोर पार्रा
    • प्रकाशन : मेधा बुक्स
    • संस्करण : 2003

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