पिता पर कुछ पंक्तियाँ

pita par kuch panktiyan

शचींद्र आर्य

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पिता पर कुछ पंक्तियाँ

शचींद्र आर्य

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    ऐसा भी नहीं है, कविताओं में पिता उपेक्षा के शिकार हैं।

    लेकिन उन पर कुछ लिखना बहुत मुश्किल काम में जुट जाना है।

    कभी तो लगता,

    जितना हम अपने बचपन में माँ के क़रीब रहे,

    उतनी निकटता आने वाले निकट जीवन में पिता से कभी हो नहीं पाएगी।

    पर ऐसा नहीं है।

    हम एक समय में दोनों के साथ उसी अनुपात में रहे।

    कई बातें दोनों से एक साथ सीखते रहे।

    जैसे पिता ने हमारी अम्मा पर हाथ नहीं उठाया,

    हम कभी उनसे बेतरह किसी औरत को पीटना नहीं सीख पाए।

    उनसे हमने अम्मा के बीमार हो जाने पर घर में झाड़ू लगाना,

    झाड़ू लगाकर पोंछा और वक्त निकालकर बर्तन धोना सीखा।

    थोड़े बड़े हुए, तब उन्हें देख साबुन लगाकर हमें अपने कपड़े धोना आया।

    वह गालियाँ नहीं देते थे, इसलिए हम उनसे गालियाँ भी नहीं सीख पाए।

    हमने उनसे हर रोज़ एक पन्ना सुलेख लिखना सीखा।

    किताबों को पलटते हुए किताब पर थूक लगाना सीखा।

    पिता से ही आड़ा वक्त आने पर पैसे को पानी समझा।

    पैसा अभी मेरे पास नहीं है,

    पर ज़रूरत पड़ने पर वह कैसे किसी के काम सकता है, यह सीखा।

    उनके भीतर हमने हर साल गाँव जाते हुए परिवार के पास रहने की उनकी इच्छा

    देखी।

    देखा, कैसे सब लोगों की ज़िंदगी में शामिल हुआ जाता है।

    उन्हीं से हमने यह याद को तस्वीर बनाने का हुनर सीखा।

    उनसे हमने बिना शहरी हुए इस शहर में कैसे रहा जा सकता है, यह सीखा।

    कभी तो लगता है, पिता हमारे लिए

    हमारे व्यवहार की आचार संहिता साबित हुए।

    हम उनकी छाया में किसी पौधे की तरह रहे,

    उसी में थोड़े दब्बू और डरपोक बनते रहे।

    हममें कभी किसी भी काम को अपनी ज़िम्मेदारी पर कर लेने

    का साहस और सहज बुद्धि दोनों ही विकसित नहीं हो पाई।

    हम हमेशा अपने पिता पर आश्रित बने रहे।

    जैसा उन्होंने कहा, हमने हमेशा वैसा किया।

    तुमसे शादी करने के लिए भी उन्होंने कहा।

    उन्होंने कहा—मना मत करना।

    तुमसे शादी के लिए मैंने कभी मना नहीं किया।

    बस उन दिनों दोस्तों के सामने बहाना बनाया,

    इस शादी के बहाने से एक और पीढ़ी गाँव से जुड़ी रहेगी।

    पिता भी यही चाहते होंगे,

    यही सोच इस बात को अपनी ओट बनाया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शचींद्र आर्य
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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