अपनेक रक्तमे जे अछि फेँट-फाँट
से हमरा वर्ण-संकर कहैये हे हमर पिता!
अपनेक जोड़ल मोनमे जे टूटल व्यथा अछि
से हमरा 'सोचह' कहैये हे हमर पिता!
अपनेक बाँस-मोनक छाहरितर
हमर पनपैत पेंपी सुखाइत रहल अछि
आ एहि सुखाइत धूआमे औँटाइत जीवन
हमरा ओधि कोढ़ह' कहैये हे हमर पिता!
मायक संग अहाँक मधुर-संयोगसँ नीक
हमर जन्म परखनली द्वारा होइत
किये तँ मुइलाक बाद एना अभिशाप सन
साटल नहि चलितहुँ हे हमर पिता!
गीता-प्रवचन लेल ख्यात अहाँ एहि परोपट्टामे
ई हमरा लेल गौरवक बात
जँ अपना एक्कहुटा सन्तानकेँ
अर्जुन-एकलव्य बनौने रहितहुँ हे हमर पिता!
अहाँ कोर्टक गबाह, मोनक घबाह, आ
लकीरक फकीर बनब सिखलहुँ
मुदा देखलहुँ नहि कहियो, जे कौआ कुचरि
कोनो नब पाहुनक समाद कहैये हे हमर पिता!
अहाँ जेठरैयतक दरबारसँ लऽ कऽ
मुखिया-सरपंच धरिक आगाँ झुकल रहैत अयलहुँ
भूखल रखैत अयलहुँ अपन सन्तानकेँ
से आब प्रश्नक कमान कसैये हे हमर पिता!
हम एकटा अंतहीन यात्रापर विदा छी
जतऽ सम्बन्धसँ पैघ होइछ कर्म
अपनेक दिशाहीन जीवन हमरा
छान्हि-बान्हि नहि सकैये हे हमर पिता!
रंचमात्र अहाँक मोन दुखित भऽ सकैये
जे हम बाप सन नहि भऽ सकलहुँ
अहाँ हमर बाप नहि भऽ सकैत छी
बाप तँ हमर
खेत आ खदानमे खटैये हे हमर तथाकथित पिता!
- पुस्तक : उपक्रम (पृष्ठ 33)
- रचनाकार : बिभूति आनन्द
- प्रकाशन : भवानी प्रकाशन
- संस्करण : 1984
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