Font by Mehr Nastaliq Web

पीड़ा से अब पीड़ा का उपचार रह गया है

piDa se ab piDa ka upchaar rah gaya hai

कृष्ण मुरारी पहारिया

कृष्ण मुरारी पहारिया

पीड़ा से अब पीड़ा का उपचार रह गया है

कृष्ण मुरारी पहारिया

और अधिककृष्ण मुरारी पहारिया

    पीड़ा से अब पीड़ा का उपचार रह गया है

    नेह उठ गया जग से लोकाचार रह गया है

    व्यथा दबाकर जीना होता अपने प्रति अपराध

    पीड़ाहीन धरा के सपनों की झूठी है साध

    हिंसा का बदला हिंसा है, प्रायश्चित है भूल

    पीड़ा देने वाला आँखों में रहता है झूल

    कोमल मन पर केवल अत्याचार रह गया है

    अंतर में पालो कठोरता, कोमलता के बीच

    कठिन समय पर इस धरती को दो लोहू से सींच

    लोहू फिर अपना हो या प्रतिद्वंद्वी की काया का

    परदा तहस-नहस करना है कैसी भी माया का

    भय की ओटों केवल भ्रष्टाचार रह गया है

    स्रोत :
    • पुस्तक : यह कैसी दुर्धर्ष चेतना (पृष्ठ 90)
    • रचनाकार : कृष्ण मुरारी पहारिया
    • प्रकाशन : दर्पण प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY