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फटी एड़ियाँ

phati eDiyan

श्रेया शिवमूर्ति

श्रेया शिवमूर्ति

फटी एड़ियाँ

श्रेया शिवमूर्ति

और अधिकश्रेया शिवमूर्ति

    खेतों में गुड़ाई करते पैर

    खदानों की खुदाई करते पैर

    …इन पैरों की एड़ियाँ फट जाती हैं

    एक वक़्त ऐसा भी आता है

    जब एड़ियों के बीच गहरी दरारें साफ़ दिखाई देती हैं

    इन दरारों में दबी होती हैं मन की पीड़ाएँ

    इन दरारों में सुबकती हैं मज़बूरियाँ

    ये दरारें आए दिन दर्द से चीखती हैं

    लेकिन पैर इनके दर्द को अनसुना कर देते हैं

    और हर दिन अपने सफ़र पर निकल पड़ते हैं

    वे महज़ दो वक़्त की रोतो के जुगाड़ के लिए

    दिन-दिन भर भटकते रहते हैं

    एड़ियाँ पैरों से झगड़ती हैं

    चीखती हैं—चिल्लाती हैं

    उनका तर्क है कि वे रोटियाँ नहीं खाती हैं

    रोटियों के लिए फिर वो क्यों खटकते हैं

    भटकते हैं साल के चारों मास, मास के हर दिन

    दिन के हर पहर उन्हें केवल एक ही चिंता सताती है

    कहाँ से और कैसे आएँगी रोटियाँ

    जब-जब फटी एड़ियाँ बगावत को कड़ी होती हैं

    पेट की ऐठन उनसे मिन्नते करती है

    एडियों की दरारों का घाव और उनमें भरा मवाद,

    पेट की ऐठन के की असहनीय पीड़ा के सामने छोटे लगते हैं

    और फटी एड़ियाँ फिर से ख़ुद को कष्ट दें के लिए तैयार कर लेती हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : श्रेया शिवमूर्ति
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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